बदला किन्नरों का जीवन
सौरभ स्वीकृत
भारतीय उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में किन्नरों को तीसरी लिंग श्रेणी की मान्यता दी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वो किन्नरों को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण दे। संविधान के जरिये यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या लिंग का हो, अपनी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ सकता है। संविधान में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है और लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही की गयी है। लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव बराबरी के मौलिक अधिकार का हनन है। संविधान में बराबरी का हक देने वाले अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का लिंग से कोई संबंध नहीं हैं। इसलिए ये सिर्फ स्त्री, पुरुष तक सीमित नहीं है। इनमें किन्नर भी शामिल हैं। किन्नर एक विशेष सामाजिक धार्मिक और सांस्कृतिक समूह है इसलिए इन्हें स्त्री, पुरुष से अलग तीसरा लिंग माना माना गया है।
कोर्ट के द्वारा सरकार को दिया गया आदेश
1- किन्नरों को तीसरे लिंग के तौर पर शामिल कर संविधान और कानून में मिले सभी अधिकार और संरक्षण दिये जायें
2- किन्नरों को अपने लिंग की पहचान तय करने का हक है। केंद्र व सभी राज्य सरकारें उन्हें कानूनी पहचान दें।
3- इन्हें सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ा मानते हुए शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में आरक्षण दिया जाये।
4- सरकार इनकी चिकित्सा समस्याओं के लिए अलग से एचआइवी सीरो र्सिवलांस केंद्र स्थापित करें।
5- सरकार किन्नरों की सामाजिक समस्याओं जैसे भय, अपमान, शर्म व सामाजिक कलंक आदि के निवारण के गंभीर प्रयास करे।
6- इन्हें अस्पतालों में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराए और अलग से पब्लिक टायलेट व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराए।
7- सरकारें इनकी बेहतरी के लिए सामाजिक कल्याण योजनाएं बनाये।
8- सरकार किन्नरों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के प्रयास करें ताकि किन्नर अपने को अछूत या अलग थलग न महसूस करें
9- सरकार इनकी उनकी पुरानी संास्कृतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा की पहचान दिलाने के लिए कदम उठाये।
भेदभाव का इतिहास
ट्रांसजेंडरों के साथ दुनिया भर में भेदभाव होता रहा है, लेकिन जहां अन्य देशों में इन्हें समाज के अंदर कहीं न कहीं जगह मिल जाती है, वहीं दक्षिण एशिया के हालात अलग हैं। ट्रांसजेंडरों के अलावा किन्नरों के साथ भी भेदभाव का लंबा इतिहास रहा है। 300 से 400 ईसा पूर्व में संस्कृत में लिखे गए कामसूत्र में भी स्त्री और पुरुष के अलावा एक और लिंग की बात कही गयी है। हालांकि भारत में मुगलों के राज में किन्नरों की काफी इज्जत हुआ करती थी। उन्हें राजा का करीबी माना जाता था। कई इतिहासकारों का यहां तक दावा है कि कई लोग अपने बच्चों को किन्नर बना दिया करते थे ताकि उन्हें राजा के पास नौकरी मिल सके। आज हालात ऐसी नहीं है। इन्हें समाज से अलग कर के देखा जाता है। वे ना ही शिक्षा पा सकते हैं और न कहीं नौकरी कर सकते हैं।
भारत में किन्नरों के बुरे थे हालात
विकास के लाखों दावे करने वाला भारतीय समाज आज भी स्त्री और पुरुष के परंपरागत दायरे में इस कदर बंधा है कि ट्रांसजेंडर और किन्नरों को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। इन लोगों को हर सुख सुविध से वंचित रखा गया था। यहां तक की सरकार ने ट्रेन पर रुपये मांगने के तरीके को भी गलत बताया था, लेकिन इनके लिए कोई भी विशेष सुविधा और योजना तैयार नहीं किया गया था। देश में किन्नरों की संख्या लगभग 5 से 10 लाख है।
बांग्लादेश में चलता है खास स्किम
दक्षिण एशिया में वैसे भी किन्नरों के लिए जीवन आसान नहीं है परिवार उन्हें निकाल देते हैं। फिर वे भीख मांगने, ड्रग्स का धंधा या देह व्यापार में लग जाते हैं। यह एक ऐसा चक्र बन जाता है जिससे निकलना लोगों के लिए आसान नहीं होता है। बांग्लादेश में किन्नरों के लिए खास स्किम चलाया जा रहा है। जिसके कारण वहां के किन्नर सम्मान का जीवन जी पा रहे हैं और पसंद का काम भी कर रहे हैं। यहां के प्राइवेट ऑफिसों में इन्हें नौकरी दी जा रही है। पहले तो लोगो ने इसका विरोध किया लेकिन अब आम लोगों को इनके साथ काम करने में कोई शिकायत नहीं है। यहां के किन्नरों को देखे तो हर सुबह जीन्स, टी-शर्ट पहन हल्का सा मेकअप करते हैं और काम करने जाते हैं। साथ ही यहां की सरकार ने भी इनके लिए विशेष योजना बनायी है जिसका फायदा यहां के किन्नर उठा रहे हैं और अपने जीवन को बेहतर बना रहे हैं। यहां पर विडीयोग्राफी, सिलाई, ब्यूटी पार्लर से जुड़े प्रशिक्षण भी दिए जा रहे हैं। दो किन्नरों को तो यहां एटीएन बांग्ला मीडिया में वीडियो एडिटर के तौर पर काम मिला है। जबकि कई मेकअप आर्टस्टि हैं। अब यहां के सभी निजी क्षेत्र के लोग किन्नरो को काम पर रखना चाहते हैं। इनमें गारमेंट फ्रैक्ट्री सबसे आगे है। सरकार ने बूढ़ किन्नरों के लिए मासिक वजीफे की सुविधा दी और उनके लिए एक खास प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया। बांग्लादेश में करीब डेढ़ लाख किन्नर हैं।
थाईलैंड में बनाया गया है एयर होस्टेस
थाईलैंड की एक एयरलाइन में किन्नरों को यात्रियों की सेवा करने का अवसर दिया जा रहा है। किन्नरों को एयर होस्टेस के रूप में नौकरी पर रखा गया है। इसके लिए 100 किन्नरों ने आवेदन किया था जिसमें 4 को फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी मिली है। एयर एशियाई शहरों के लिए अपनी सेवा की शुरुआत अप्रैल 2011 से की है। फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में उसने सिर्फ युवक-युवतियों की भर्ती करने का ही मन बनाया था लेकिन बाद यह फैसला बदल दिया गया । किन्नरों को थाईलैंड में लेडीब्वॉय के नाम से भी पुकारा जाता है। थाईलैंड में लेडीब्वॉय के खिलाफ भेदभाव कम ही देखने को मिलता है लेकिन आधिकारिक रूप से उन्हें महिला के रूप में मान्यता नहीं मिली है। उनके पहचान पत्र पर पुरुष लिखा जाता है।
पाकिस्तान में पहली बार किन्नर ने लड़ा चुनाव
पिछले साल अप्रैल में पाकिस्तान में हुआ चुनाव ऐतिहासिक रहा। चुनावी इतिहास में पहली बार एक किन्नर को चुनाव लड़ने की इजाजत दी गयी थी। अब्दुल अजीज उर्फ बिंदिया राणा के नामांकन पत्र को चुनाव आयोग ने स्वीकार कर लिया था। इससे पहले चुनाव आयोग ने बिंदिया के नाम का अनुमोदन करने वाले व्यक्ति के अनुपस्थित रहने और कंप्यूटरीकृत पहचान पत्र [सीएनआइसी] उपलब्ध नहीं होने के कारण नामांकन खारिज कर दिया था। फैसले के खिलाफ उन्होंने अपील की। जिसके बाद जस्टिस फैजल अरब की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय ट्रिब्यूनल ने बिंदिया को किन्नर समुदाय के प्रतिनिधि के तौर पर चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी थी।
किन्नरों के लिए चुनाव आयोग का 'अन्य' विकल्प
भारत में चुनाव आयोग ने किन्नरों और ट्रांससेक्सुअल लोगों के लिए एक अलग वर्ग तैयार किया है। ऐसे लोगों के लिए चुनाव प्रक्रिया के दस्तावेजों में अब मेल, फीमेल के अलावा 'अन्य' का विकल्प होगा। चुनाव आयोग के मुताबिक 'अन्य' यानि 'ओ' वाला विकल्प किन्नरों और ट्रांससेक्सुअल लोगों के बनाया गया है। किन्नर या ट्रांससेक्सुअल लोग इस विकल्प का इस्तेमाल करने या न करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होंगे। ट्रांससेक्सुअल उन लोगों को कहा जाता है जिनकी शारीरिक रचना में महिलाओं और पुरुषों के गुण एक साथ पाये जाते हैं। भारत में अब तक ऐसे लोग ज्यादातर सरकारी दस्तावेजों में महिला या पुरुष की श्रेणी रखे जाते रहे हैं। इसे चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर भी लागू करेगा। निर्वाचन आयोग के मुताबिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के इस बारे में जरूरी निर्देश दे दिए गए हैं। निर्देश में यह भी कहा गया है कि अब चुनाव प्रक्रिया को लेकर घर-घर जाने वाले कर्मचारी जरूरी जानकारी इकट्ठा करते समय लोगों के लोगों की इच्छा पर ही 'अन्य' का विकल्प भरेंगे।
किन्नरों की जिन्दगी- आम इंसानों की तरह इनके पास भी दिल होता है, दिमाग होता है, इन्हें भी भूख सताती है, आशियाने की जरूरत इन्हें भी होती है। किन्नरों की इस जिन्दगी को नजदीका से जानने का मौका मिलता है बंगलौर में जहां हर साल पूरे दक्षिण भारत के किन्नर अपने सालाना उत्सव मनाने के लिए जमा होते हैं। बंगलौर में दो हजार किन्नर रहते हैं जबकी भारत में इनकी संख्या पांच से दस लाख के बीच मानी जाती है। किन्नर उस समाज तक यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं जो उन्हें अपने से अलग समझता है। इसके जरिए ये किन्नर अपनी समस्याओं की तरफ लोगों का ध्यान खींचना चाहते हैं। किन्नरों के अधिकार के लिए काम करने वाली संस्था विविधा भी किन्नरों के उत्थान के लिए कार्य कर रही है। सभी किन्नर इस उत्सव को एका मंच का रूप देना चाहते हैं जहां समलैंगिका भी अपनी आवाज उठा सकते हैं। विल्लुपुरम् (तमिलनाडु) से कोई घंटे की दूरी तय करने पर गन्ने के खेतों से भरा छोटा सा एका गांव है कूवगम जिसे किन्नरों का घर कहा जाता है। इसी कूवगम में महाभारत काल के योद्घा अरावान का मंदिर है।
मान्यता : हिन्दू मान्यता के अनुसार पांडवों को युद्घ जीतने के लिए अरावान की बलि देनी पड़ी थी। अरावान ने आखिरी इच्छा जतायी कि वो शादी करना चाहता है ताकि मृत्यु की अंतिम रात को वह पत्नी सुख का अनुभव कर सके। कथा के अनुसार अरावान की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण ने स्वयं स्त्री का रूप लिया और अगले दिन ही अरावान पति बन गये। इसी मान्यता के तहत कूवगम में हजारों किन्नर हर साल दुल्हन बनकर अपनी शादी रचाते हैं और इस शादी के लिए कूवगम के इस मंदिर के पास जमकर नाच गाना होता है। इसे देखने के लिए लोग जुटते हैं। फिर मंदिर के भीतर पूरी औपचारिकता के साथ अरावान के साथ किन्नरों की शादी होती है। शादी किन्नरों के लिए बड़ी चीज होती है इसलिए मंदिर से बाहर आकर अपनी इस दुल्हन की तस्वीर को वह कैमरों में भी कैद करवाते हैं।
बदलाव : किन्नरों की दुनिया से लोग आगे निकल रहे हैं और कुछ राज्यों में तो उन्होंने सक्रिय राजनीति में कामयाबी भी पायी है। शबनम मौसी मध्य प्रदेश में विधायका चुनी गयी थी।
सभी धर्मों को देते हैं आदर- किन्नर सभी समाज को लोगों को आदर देते हैं। किसी के बच्चा हुआ या शादी-विवाह सभी को आशीर्वाद एवं बधाई देने जाते हैं। अनेका त्योहारों पर भी यह बाजार से चंदा एकत्रित करते हैं। सभी के खुशियों में शामिल होते है। इनकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये किसी भी धर्म को बड़ा या छोटा नहीं समझते हैं।
झारखंड में किन्नरों कि स्थिति
वोटर लिस्ट में किन्नरों के लिए पहले जेंडर का कोई प्रावधान नहीं था। इस कारण यह समस्या होती थी कि उन्हें किस कम्यूनिटी में रखा जाये। वर्ष 2012 में इलेक्शन कमिशन द्वारा इस कम्यूनिटी के लिए ह्यअदर्सह्ण (अन्य) कॉलम शुरु किया। इस कॉलम में किन्नरों को शामिल किया गया। कॉलम तो बना दिया गया, लेकिन बहुत ज्यादा किन्नरों को वोटर लिस्ट से नहीं जोड़ा जा सका।
स्टेट में केवल 26 किन्नर वोटर
झारखंड की वोटर लिस्ट पर गौर करें तो यहां केवल 26 किन्नर का नाम ही लिस्ट में है। राज्य में लगभग 1.99 करोड़ वोटर्स हैं। लिस्ट में पंजीकृत 26 में से 3 किन्नर पहली बार अपनी मतदान का प्रयोगा करेंगे। इस्ट सिंहभूम के अलग-अलग क्षेत्रों में काफी संख्या में किन्नर कम्यूनिटी रहती हैं, लेकिन जमशेदपुर की वोटर लिस्ट में केवल 3 किन्नर का नाम होना चौकाता है। नये मतदाता का नाम दर्ज करने के लिए चलाए गए कैम्पेन के तहत राज्य में लगभग 188.2 लाख नये मतदाता को मतदाता सूची से जोड़ा गया। इनमें 9 लाख 63 हजार 8842 पुरुष व 88 लाख 388 हजार 403 महिला मतदाता हैं, लेकिन इस दौरान केवल 3 नये किन्नरों को ही लिस्ट से जोड़ा जा सका है।
भारतीय उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में किन्नरों को तीसरी लिंग श्रेणी की मान्यता दी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वो किन्नरों को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण दे। संविधान के जरिये यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या लिंग का हो, अपनी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ सकता है। संविधान में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है और लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही की गयी है। लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव बराबरी के मौलिक अधिकार का हनन है। संविधान में बराबरी का हक देने वाले अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का लिंग से कोई संबंध नहीं हैं। इसलिए ये सिर्फ स्त्री, पुरुष तक सीमित नहीं है। इनमें किन्नर भी शामिल हैं। किन्नर एक विशेष सामाजिक धार्मिक और सांस्कृतिक समूह है इसलिए इन्हें स्त्री, पुरुष से अलग तीसरा लिंग माना माना गया है।
कोर्ट के द्वारा सरकार को दिया गया आदेश
1- किन्नरों को तीसरे लिंग के तौर पर शामिल कर संविधान और कानून में मिले सभी अधिकार और संरक्षण दिये जायें
2- किन्नरों को अपने लिंग की पहचान तय करने का हक है। केंद्र व सभी राज्य सरकारें उन्हें कानूनी पहचान दें।
3- इन्हें सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ा मानते हुए शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में आरक्षण दिया जाये।
4- सरकार इनकी चिकित्सा समस्याओं के लिए अलग से एचआइवी सीरो र्सिवलांस केंद्र स्थापित करें।
5- सरकार किन्नरों की सामाजिक समस्याओं जैसे भय, अपमान, शर्म व सामाजिक कलंक आदि के निवारण के गंभीर प्रयास करे।
6- इन्हें अस्पतालों में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराए और अलग से पब्लिक टायलेट व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराए।
7- सरकारें इनकी बेहतरी के लिए सामाजिक कल्याण योजनाएं बनाये।
8- सरकार किन्नरों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के प्रयास करें ताकि किन्नर अपने को अछूत या अलग थलग न महसूस करें
9- सरकार इनकी उनकी पुरानी संास्कृतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा की पहचान दिलाने के लिए कदम उठाये।
भेदभाव का इतिहास
ट्रांसजेंडरों के साथ दुनिया भर में भेदभाव होता रहा है, लेकिन जहां अन्य देशों में इन्हें समाज के अंदर कहीं न कहीं जगह मिल जाती है, वहीं दक्षिण एशिया के हालात अलग हैं। ट्रांसजेंडरों के अलावा किन्नरों के साथ भी भेदभाव का लंबा इतिहास रहा है। 300 से 400 ईसा पूर्व में संस्कृत में लिखे गए कामसूत्र में भी स्त्री और पुरुष के अलावा एक और लिंग की बात कही गयी है। हालांकि भारत में मुगलों के राज में किन्नरों की काफी इज्जत हुआ करती थी। उन्हें राजा का करीबी माना जाता था। कई इतिहासकारों का यहां तक दावा है कि कई लोग अपने बच्चों को किन्नर बना दिया करते थे ताकि उन्हें राजा के पास नौकरी मिल सके। आज हालात ऐसी नहीं है। इन्हें समाज से अलग कर के देखा जाता है। वे ना ही शिक्षा पा सकते हैं और न कहीं नौकरी कर सकते हैं।
भारत में किन्नरों के बुरे थे हालात
विकास के लाखों दावे करने वाला भारतीय समाज आज भी स्त्री और पुरुष के परंपरागत दायरे में इस कदर बंधा है कि ट्रांसजेंडर और किन्नरों को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। इन लोगों को हर सुख सुविध से वंचित रखा गया था। यहां तक की सरकार ने ट्रेन पर रुपये मांगने के तरीके को भी गलत बताया था, लेकिन इनके लिए कोई भी विशेष सुविधा और योजना तैयार नहीं किया गया था। देश में किन्नरों की संख्या लगभग 5 से 10 लाख है।
बांग्लादेश में चलता है खास स्किम
दक्षिण एशिया में वैसे भी किन्नरों के लिए जीवन आसान नहीं है परिवार उन्हें निकाल देते हैं। फिर वे भीख मांगने, ड्रग्स का धंधा या देह व्यापार में लग जाते हैं। यह एक ऐसा चक्र बन जाता है जिससे निकलना लोगों के लिए आसान नहीं होता है। बांग्लादेश में किन्नरों के लिए खास स्किम चलाया जा रहा है। जिसके कारण वहां के किन्नर सम्मान का जीवन जी पा रहे हैं और पसंद का काम भी कर रहे हैं। यहां के प्राइवेट ऑफिसों में इन्हें नौकरी दी जा रही है। पहले तो लोगो ने इसका विरोध किया लेकिन अब आम लोगों को इनके साथ काम करने में कोई शिकायत नहीं है। यहां के किन्नरों को देखे तो हर सुबह जीन्स, टी-शर्ट पहन हल्का सा मेकअप करते हैं और काम करने जाते हैं। साथ ही यहां की सरकार ने भी इनके लिए विशेष योजना बनायी है जिसका फायदा यहां के किन्नर उठा रहे हैं और अपने जीवन को बेहतर बना रहे हैं। यहां पर विडीयोग्राफी, सिलाई, ब्यूटी पार्लर से जुड़े प्रशिक्षण भी दिए जा रहे हैं। दो किन्नरों को तो यहां एटीएन बांग्ला मीडिया में वीडियो एडिटर के तौर पर काम मिला है। जबकि कई मेकअप आर्टस्टि हैं। अब यहां के सभी निजी क्षेत्र के लोग किन्नरो को काम पर रखना चाहते हैं। इनमें गारमेंट फ्रैक्ट्री सबसे आगे है। सरकार ने बूढ़ किन्नरों के लिए मासिक वजीफे की सुविधा दी और उनके लिए एक खास प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया। बांग्लादेश में करीब डेढ़ लाख किन्नर हैं।
थाईलैंड में बनाया गया है एयर होस्टेस
थाईलैंड की एक एयरलाइन में किन्नरों को यात्रियों की सेवा करने का अवसर दिया जा रहा है। किन्नरों को एयर होस्टेस के रूप में नौकरी पर रखा गया है। इसके लिए 100 किन्नरों ने आवेदन किया था जिसमें 4 को फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी मिली है। एयर एशियाई शहरों के लिए अपनी सेवा की शुरुआत अप्रैल 2011 से की है। फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में उसने सिर्फ युवक-युवतियों की भर्ती करने का ही मन बनाया था लेकिन बाद यह फैसला बदल दिया गया । किन्नरों को थाईलैंड में लेडीब्वॉय के नाम से भी पुकारा जाता है। थाईलैंड में लेडीब्वॉय के खिलाफ भेदभाव कम ही देखने को मिलता है लेकिन आधिकारिक रूप से उन्हें महिला के रूप में मान्यता नहीं मिली है। उनके पहचान पत्र पर पुरुष लिखा जाता है।
पाकिस्तान में पहली बार किन्नर ने लड़ा चुनाव
पिछले साल अप्रैल में पाकिस्तान में हुआ चुनाव ऐतिहासिक रहा। चुनावी इतिहास में पहली बार एक किन्नर को चुनाव लड़ने की इजाजत दी गयी थी। अब्दुल अजीज उर्फ बिंदिया राणा के नामांकन पत्र को चुनाव आयोग ने स्वीकार कर लिया था। इससे पहले चुनाव आयोग ने बिंदिया के नाम का अनुमोदन करने वाले व्यक्ति के अनुपस्थित रहने और कंप्यूटरीकृत पहचान पत्र [सीएनआइसी] उपलब्ध नहीं होने के कारण नामांकन खारिज कर दिया था। फैसले के खिलाफ उन्होंने अपील की। जिसके बाद जस्टिस फैजल अरब की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय ट्रिब्यूनल ने बिंदिया को किन्नर समुदाय के प्रतिनिधि के तौर पर चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी थी।
किन्नरों के लिए चुनाव आयोग का 'अन्य' विकल्प
भारत में चुनाव आयोग ने किन्नरों और ट्रांससेक्सुअल लोगों के लिए एक अलग वर्ग तैयार किया है। ऐसे लोगों के लिए चुनाव प्रक्रिया के दस्तावेजों में अब मेल, फीमेल के अलावा 'अन्य' का विकल्प होगा। चुनाव आयोग के मुताबिक 'अन्य' यानि 'ओ' वाला विकल्प किन्नरों और ट्रांससेक्सुअल लोगों के बनाया गया है। किन्नर या ट्रांससेक्सुअल लोग इस विकल्प का इस्तेमाल करने या न करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होंगे। ट्रांससेक्सुअल उन लोगों को कहा जाता है जिनकी शारीरिक रचना में महिलाओं और पुरुषों के गुण एक साथ पाये जाते हैं। भारत में अब तक ऐसे लोग ज्यादातर सरकारी दस्तावेजों में महिला या पुरुष की श्रेणी रखे जाते रहे हैं। इसे चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर भी लागू करेगा। निर्वाचन आयोग के मुताबिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के इस बारे में जरूरी निर्देश दे दिए गए हैं। निर्देश में यह भी कहा गया है कि अब चुनाव प्रक्रिया को लेकर घर-घर जाने वाले कर्मचारी जरूरी जानकारी इकट्ठा करते समय लोगों के लोगों की इच्छा पर ही 'अन्य' का विकल्प भरेंगे।
किन्नरों की जिन्दगी- आम इंसानों की तरह इनके पास भी दिल होता है, दिमाग होता है, इन्हें भी भूख सताती है, आशियाने की जरूरत इन्हें भी होती है। किन्नरों की इस जिन्दगी को नजदीका से जानने का मौका मिलता है बंगलौर में जहां हर साल पूरे दक्षिण भारत के किन्नर अपने सालाना उत्सव मनाने के लिए जमा होते हैं। बंगलौर में दो हजार किन्नर रहते हैं जबकी भारत में इनकी संख्या पांच से दस लाख के बीच मानी जाती है। किन्नर उस समाज तक यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं जो उन्हें अपने से अलग समझता है। इसके जरिए ये किन्नर अपनी समस्याओं की तरफ लोगों का ध्यान खींचना चाहते हैं। किन्नरों के अधिकार के लिए काम करने वाली संस्था विविधा भी किन्नरों के उत्थान के लिए कार्य कर रही है। सभी किन्नर इस उत्सव को एका मंच का रूप देना चाहते हैं जहां समलैंगिका भी अपनी आवाज उठा सकते हैं। विल्लुपुरम् (तमिलनाडु) से कोई घंटे की दूरी तय करने पर गन्ने के खेतों से भरा छोटा सा एका गांव है कूवगम जिसे किन्नरों का घर कहा जाता है। इसी कूवगम में महाभारत काल के योद्घा अरावान का मंदिर है।
मान्यता : हिन्दू मान्यता के अनुसार पांडवों को युद्घ जीतने के लिए अरावान की बलि देनी पड़ी थी। अरावान ने आखिरी इच्छा जतायी कि वो शादी करना चाहता है ताकि मृत्यु की अंतिम रात को वह पत्नी सुख का अनुभव कर सके। कथा के अनुसार अरावान की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण ने स्वयं स्त्री का रूप लिया और अगले दिन ही अरावान पति बन गये। इसी मान्यता के तहत कूवगम में हजारों किन्नर हर साल दुल्हन बनकर अपनी शादी रचाते हैं और इस शादी के लिए कूवगम के इस मंदिर के पास जमकर नाच गाना होता है। इसे देखने के लिए लोग जुटते हैं। फिर मंदिर के भीतर पूरी औपचारिकता के साथ अरावान के साथ किन्नरों की शादी होती है। शादी किन्नरों के लिए बड़ी चीज होती है इसलिए मंदिर से बाहर आकर अपनी इस दुल्हन की तस्वीर को वह कैमरों में भी कैद करवाते हैं।
बदलाव : किन्नरों की दुनिया से लोग आगे निकल रहे हैं और कुछ राज्यों में तो उन्होंने सक्रिय राजनीति में कामयाबी भी पायी है। शबनम मौसी मध्य प्रदेश में विधायका चुनी गयी थी।
सभी धर्मों को देते हैं आदर- किन्नर सभी समाज को लोगों को आदर देते हैं। किसी के बच्चा हुआ या शादी-विवाह सभी को आशीर्वाद एवं बधाई देने जाते हैं। अनेका त्योहारों पर भी यह बाजार से चंदा एकत्रित करते हैं। सभी के खुशियों में शामिल होते है। इनकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये किसी भी धर्म को बड़ा या छोटा नहीं समझते हैं।
झारखंड में किन्नरों कि स्थिति
वोटर लिस्ट में किन्नरों के लिए पहले जेंडर का कोई प्रावधान नहीं था। इस कारण यह समस्या होती थी कि उन्हें किस कम्यूनिटी में रखा जाये। वर्ष 2012 में इलेक्शन कमिशन द्वारा इस कम्यूनिटी के लिए ह्यअदर्सह्ण (अन्य) कॉलम शुरु किया। इस कॉलम में किन्नरों को शामिल किया गया। कॉलम तो बना दिया गया, लेकिन बहुत ज्यादा किन्नरों को वोटर लिस्ट से नहीं जोड़ा जा सका।
स्टेट में केवल 26 किन्नर वोटर
झारखंड की वोटर लिस्ट पर गौर करें तो यहां केवल 26 किन्नर का नाम ही लिस्ट में है। राज्य में लगभग 1.99 करोड़ वोटर्स हैं। लिस्ट में पंजीकृत 26 में से 3 किन्नर पहली बार अपनी मतदान का प्रयोगा करेंगे। इस्ट सिंहभूम के अलग-अलग क्षेत्रों में काफी संख्या में किन्नर कम्यूनिटी रहती हैं, लेकिन जमशेदपुर की वोटर लिस्ट में केवल 3 किन्नर का नाम होना चौकाता है। नये मतदाता का नाम दर्ज करने के लिए चलाए गए कैम्पेन के तहत राज्य में लगभग 188.2 लाख नये मतदाता को मतदाता सूची से जोड़ा गया। इनमें 9 लाख 63 हजार 8842 पुरुष व 88 लाख 388 हजार 403 महिला मतदाता हैं, लेकिन इस दौरान केवल 3 नये किन्नरों को ही लिस्ट से जोड़ा जा सका है।
बदला किन्नरों का जीवन
Reviewed by saurabh swikrit
on
11:48 am
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