देश का विकास हो, युवाओं पर विशेष ध्यान हो


* युवा शक्ति के उपयोग से ही भारत बन सकता है महाशक्ति
* आजादी दिवस पर युवाओं का संकल्प, भारत बने विश्व का सिरमौर

अनेकता में एकता की मिशाल है भारत। विभिन्न धर्मानुयायी,  जातियां, विभिन्न भाषा के लोग रहते हैं यहां। वेशभूषा, खान-पान, बोलचाल की दृष्टि से विभिन्नता लक्षित होती है। यह एक ऐसा देश है जहां सभी धर्मों को एक नजर से देखा जाता है। यह यहां की सामाजिक संस्कृति की विशेषता रही है। एकता की इस अनुभूति ने हमें सामाजिक राजनितिक जीवन के निर्माण में मदद की है। हमारे देश में धर्म एवं मजहब को मानने की पूरी स्वतंत्रता है, लेकिन इसका अनुचित लाभ नहीं उठाया जाना चाहिए। धर्म और मजहब तभी तक है जब तक देश सुरक्षित है। यदि देश की स्वतंत्रता ही खतरे में पड़ जायेगी तो हम और हमारा धर्म कहीं के भी नहीं रहेंगे। हमें उन बातों को प्रोत्साहित करना है जिनसे एकता की भावना मजबूत होती है। भावनात्मकता एकता की सबसे अधिक आवश्यकता है।
                वास्तव में माता और मातृभूमि के मोह से मनुष्य मृत्यु तक मुक्त नहीं होता। इन दोनों के इतने उपकार होते हैं कि मानव उनसे आजीवन उऋण नहीं हो पाता मातृभूमि की मान रक्षा के लिए अपने को बलिदान करने में जो परम आनंद प्राप्त होता है। देशहित के लिए अपना सर्वस्त्र बलिदान करने में जो सुख-शांति मिलती है, उसका मूल्य कोई सच्चा देश भक्त ही जान सकता है। देश सेवा और परोपकार ही उसका धर्म होता है। देशवासियों के सुख-दुख में ही उसका सुख-दुख निहित होता है। उसकी अंतरात्मा स्वार्थरहित होती है। देश की सर्वांगीण उन्नति के लिए स्वदेश प्रेम परम आवश्यक है। जिस देश के निवासी अपने देश के कल्याण में अपना कल्याण, अपने देश के अभ्युदय में अपना उदय समझना चाहिए।
भारत निरंतर प्रगति के पथ पर विकसित होता चला जा रहा है। आजाद भारत ने अपनी एक लंबी यात्रा पूरी कर ली है। अब उसकी योजनाओं का सुलझना शुरू हो गया है। अपनी उपलब्धियों को हम अक्सर कमतर आंका करते हैं। गर्व की अनूभूति में वह ताकत है जो आम जन में आशाओं और उम्मीदों का नया संचार करके उन्हें सामान्य से असामान्य ऊंचाइयों तक पहुंचा देती है। गर्व की यह अनुभूति अवसाद और न उम्मीदी के सबसे हताशा भरे दौर में भी एक अरब लोगों के आत्मबल को ऊंचा उठा सकती है। स्वतंत्र भारत की प्रगति पर गर्व करने लायक।  
             यह कहने में बहुत गर्व महसूस होता है 'मेरा भारत महान' या 'सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा।' लेकिन इन सबके बीच कुछ तथ्य ऐसे हैं जो निराशा की ओर अग्रसर करते हैं। देश की अंदरूनी हालातों को झांक कर देखें तो पता चलता है कि हमारा देश कितना पानी में है। पिछले साल मोदी सरकार ने सामाजिक आर्थिक जनगणना के आंकड़े सामने रखे जो वास्तविकता को दिखाती हुई एक कुरूप तस्वीर पेश करती है' वो तस्वीर हमसे मुखातिब होते हुए कहती है कि भारत की जनसंख्या का 75 फीसदी हिस्सा अभी तक ऐसा है जो 5000 रुपये से नीचे की मासिक आय से गुजारा करता है और 10000 से अधिक मासिक आय वालों की संख्या मात्र 8 फीसदी है' ऐसी रिपोर्ट देखने के बाद क्या आपकी आत्मा गवाही देगी आपको कि आप 'सारे जहां  से अच्छा हिंदुस्तान हमारा' और 'मेरा भारत महान' का उद्घोष करे?
देश में 31 फीसदी से अधिक लोग ऐसे है जो या तो झुग्गी झोपड़ी या छप्पर में रहते हैं या जिनके पास रहने का स्थान भी नही है।' ऐसे लोगों का घर बनें। इनकी बुनियादी जरुरतें पूरी हो, तभी हम गर्व से यह कह सकेंगे कि 'सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा'।

                आप देश की आजादी के समय के ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें उठाकर देखें तो उसमंे आपको लोगों की आंखों में खुशियां के रंग बिरंगे डोरे दिख जायेंगे जो बताते हैं कि उन आंखों में एक सपना है। उनकी खुली आंखों में यह सपना दिखता है कि 'अब हम आजाद हुए, अब देश में खुशहाली ही खुशहाली आ जायेगी और सब इस खुशी का हिस्सा होंगे।' 'आजादी के वक्त लोगों ने जेहन में एक बात उतार ली थी कि अब लुटेरों का शासन समाप्त हुआ। अब सत्ता की बागडोर अपने हांथों में है' देश के सभी आर्थिक संसाधनों का उचित उपयोग होगा और हर इक व्यक्ति उससे लाभ लेगा।' लेकिन ये सपना भी महज सपना ही रह गया'। आज जो रिपोर्ट हमारे सामने आयी है, वह बता रही है कि हमारी दिशा और दशा दोनों भटकाव का शिकार हो गयीं।
                                असल में भारत कभी आगे बड़ा ही नही...। आज भी राष्ट्रीय राजमार्ग में 10 किलीमीटर नीचे उतरें तो देश आपको वहीं खड़ा मिलेगा जहां 70 साल पहले एक फकीर छोड़कर गया था।' आज हमारी सरकार जिसके ऊपर जनता की जिम्मेदारी थी वो खुश होती है इस बात को लेकर हमने तरक्की की है और 20 रुपये में पानी की बोतल जनता को पीने के लिए उपलब्ध करायी है लेकिन यह तरक्की नही है लोकतंत्र के मुह पर करारा तमाचा है कि आजादी के 70 साल बाद भी आप जनता को पीने का शुद्ध पानी मुफ्त उपलब्ध नहीं हो पाया है।

युवाओं को रोजगार मिले तो कोई बात बने
जिस देश को अपने युवाओं पर गर्व है। जहां लगभग 65 फीसदी जनसंख्या युवाओं की है। इसमें लगभग 15 करोड़ निबंधित बेराजगार है। जबकि इससे तीन गुणा ज्यादा युवा ऐसे हैं जो बेरोजगार तो हैं, लेकिन निबंधित नहीं हैं। इस वर्ग में बेरोजगारी की मार ऐसी है कि ये आत्महत्या करने को मजबूर हैं। आंकड़ों को देखे तो पता चलता है कि यहां कि स्थिति क्या है। आये दिन अखबारों और चैनलों में खबरें देखने को मिलती है कि एक चपरासी के लिए किसी जगह पर नियुक्ति निकलती है तो वहां पीजी और पीएचडी धारक अप्लाई करते हैं। जबकि उस पद के लिए  निर्धारित योग्यता 10वीं अथवा 12वीं होती है। दूसरी बड़ी सच्चाई यह है कि अगर कहीं 10 पद के लिए नियुक्ति निकलती है तो वहां लगभग एक लाख लोग आवेदन करते हैं। हाल ही रेलवे द्वारा नन टेक्निकल पद के 18 हजार पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किये गये थे, जिसमें लगभग 95 लाख युवाओं ने अप्लाई किया। यानी एक पद के 528 अभ्यर्थी। यही हाल सभी प्रतियोगी परीक्षाओं है।
                       बात करें झारखंड की तो यहां के प्रतियोगी परीक्षाओं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां की क ोई भी परीक्षा बिना विवाद के संपन्न नहीं होती। सरकार लाख कोशिश करें, लेकिन विवाद होना तय है। राज्य में युवाओं की बेरोजगारी की लाचारी देखकर आंखें तब नम हो जाती है। जब रांची के चौक चौराहों पर सुबह-सुबह खड़े दैनिक मजदूरों के समूह में 95 फ ीसदी युवा देखने को मिलते हैं। शहर में रिक्शा और ऑटो चालकों को देखें, खासकर ई-रिक्शा चलाने वालों को पता चलता है कि लगभग सभी ऑटो और रिक्शा पढ़े-लिखे हैं, नौकरी न मिल पाने की वजह से ऑटो रिक्शा चला कर पेट भर रहे हैं। यह सिर्फ राजधानी रांची की कहानी नहीं है। राज्य के अन्य शहर जैसे जमशेदपुर, बोकारो, हजारीबाग, दुमका, पलामू जैसे सभी शहरों में शिक्षित युवाओं को मजदूरी करते देखा जा सकता है। अगर बात करें महिलाओं को तो पता चलता है कि यहां कि 30 लाख महिला घरेलु नौकरानी, दैनिक मजदूरी और ईंटा भट्ठा जैसे जगहों में कार्यरत हैं। वहीं इन जगहों पर पुरुषों की जनसंख्या इनके दोगुनी है।

रोजगार ईमानदारी से दिया जाये भ्रष्टाचार खत्म हो 
दूसरी बात है कि राज्य में नियुक्तियों में इतनी देरी होती है कि कई अभ्यर्थियों का उम्र ही खत्म हो जाता है। उदाहरण के लिए जेपीएससी की परीक्षा को ही लें तो पता चलता है कि एक परीक्षा कराने में आयोग को दो साल लगते हैं। सरकार नियुक्ति कराने की घोषना तो करती है, लेकिन इसे धरातल पर उतरने में लंबा समय लग जाता है। अब उदाहरण के लिए हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति और जेटेट को देख लें। सरकार एक साल से नियुक्ति की बात कर रही है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हो सका है कि आखिर परीक्षा कब होगी। हां, सरकार की घोषणा के बाद कोचिंग वालों की जरूर बले-बले हो जाती है। जिस परीक्षा की तैयारी में छह महीने लगने चाहिए, कोचिंग वाले डेढ-दो साल तक पढ़ाते रहते हैं और फी लेते रहते हैं। 
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