मेरे तन में राम, मेरे मन में राम

 सौरभ स्वीकृत 


चैत्र शुक्ल नवमी का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इसी दिन त्रेता युग में रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहां मर्यादा पुरूषोत्म राम का जन्म हुआ था। दिन के बारह बजे जैसे ही श्रीराम का जन्म हुआ माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो गईं। उनके सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे। श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। देवता, ऋषि, किन्नर, चारण सभी जन्मोत्सव में शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। आज भी हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं। इस दिन भक्त उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था। इस दिन जो व्यक्ति दिनभर उपवास और रात को जागरण करता है, भगवान श्रीराम की पूजा करता है, तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है।


कैसे करें पूजन, दान पुण्य
रामनवमी हिंदु संस्कृति में बहुत ही पवित्र दिन माना जाता है। धार्मिक पोथी-पत्रों के मुताबिक इस दिन विशेष पूजन करने, दान पुण्य करने से लोग परलोक जाते हैं।
* रामनवमी के दिन भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना करने से विशेष पुण्य मिलता है। इसीलिए इस दिन पूरे समय पवित्र मुहूर्त होता है। इस दिन नए घर, दुकान या प्रतिष्ठान में प्रवेश किया जा सकता है।
* रामनवमी के दिन पंडित जी को भोजन कराना चाहिए। यदि संभव नहीं हो तो मंदिर में बिना पकी भोजन साम्रग्री भी दिया जा सकता है। 
* रामनवमी के दिन ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर स्नान करें। भगवान राम की तस्वीर को गंगाजल या किसी पवित्र नदी के जल से पोंछे। फिर उस पर कुंकुम, हल्दी, चंदन का तिलक लगाए। फिर भगवान राम को पुष्प अर्पित करें। तत्पश्चात भगवान राम की तस्वीर के सामने घी का दिया जलाएं और अगरबत्ती, धूप से वातावरण को सुगंधित करें। रामनवमी के दिन भगवान राम को खीर या मेवे का भोग लगाएं।
* भगवान राम की पूजा करते वक्त रामरक्षस्त्रोत का पाठ अवश्य करें। राममंत्र, सुंदरकांड का पाठ करें।
* भगवान राम की पूजा करने के बाद भोग के रुप में भोजन की थाली चढ़ाएं।
* गरीबों, असहायों को दान दें, भोजन कराएं।
* अपने बुजुर्गों का आर्शीवाद अवश्य लें।
* राम का जन्मोत्सव इसी तरह मनाएं जैसे घर में कोई नन्हा शिशु जन्मा हो।
* नवमी के दिन कुंआरी कन्याओं को भोजन करायें।
* कन्याओं को उपहारस्वरूप चीजें भेंट करें।
* किसी प्रकार के शुभ कार्य करने की दृष्टि से ये एक महत्वपूर्ण दिन है।
* राम मंत्र, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, सुंदर कांड आदि के पाठ से ना सिर्फ अक्षय पुण्य मिलता है बल्कि
धन संपदा के निरंतर बढ़ाने के योग जाग्रत होते हैं।
* किसी भी नए कार्य की शुरुआत, नया व्यवसाय आरंभ कर सकते हैं।
* रामनवमी के दिन पास के किसी राम मंदिर में जाकर दिया जलाएं और प्रसाद चढ़ाएं। पूजा के बाद प्रसाद को ज्यादा से ज्यादा लोगों में बांटे। 

रामनवमी का महत्व
यह त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभयता में महत्वपूर्ण रहा है। इसके साथ ही मां दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी जुड़ा है। इस तथ्य से ज्ञात होता है कि भगवान श्री राम जी ने भी देवी दुर्गा की पूजा की थी और उनके द्वारा कि गई शक्ति पूजा ने उन्हें धर्म युद्ध में उन्हें विजय प्राप्त हुयी थी। दो महत्वपूर्ण त्यौहारों का एक साथ होना पर्व की महत्ता को और भी अधिक बढ़ा देता है।

 विधि
रामनवमी का व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिला को सुबह उठना चाहिए। घर की सफाई कर गंगाजल से शुद्ध करना चाहिये। इसके पश्चात स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। एक लकड़ी के चौकोर टुकड़े पर सतिया बनाकर एक जल से भरा गिलास रखना चाहिए और अपनी अंगुली से चांदी का छल्ला निकाल कर रखना चाहिए। इसे प्रतीक रुप से गणेशजी माना जाता है। व्रत कथा सुनते समय हाथ में गेहूं-बाजरा आदि के दाने लेकर कहानी सुनने का भी महत्व है।



रामनवमी व्रत कथा
राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढि़या के घर गये। बुढि़या सूत कात रही थी। उसने उनकी आवभगत की। स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करया। राम जी ने कहा- माई, पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो भोजन करूगां। उस बेचारी के पास मोती कहां से आवें, सूत कात कर गुजारा करती थी। अतिथि को ना कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गयी। अत: दिल को मजबूत कर राजा के पास पहुंच गयी।  अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगी। राजा अचम्भे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढि़या से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर उसे को मोती दिला दिये। वह मोती लेकर घर आयी, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम, सीता और लक्ष्मण जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गये और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर उस बुढि़या को कुछ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पड़ोस के लोग मोती चुनकर ले जाने लगे।

एक दिन जब बुढि़या मोती पेड़ के नीचे बैठी सूत कात रही थी। तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। तब उसे ज्ञात हुआ। वह जल्दी से मोती बांधी और किले की ओर ले चली। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड़ गये। उसके पूछने पर बुढि़या ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बिुढ़या से मोती का पेड़ मांगने लगे। बुढि़या ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहे तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरन्त पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये। आते-जाते लोगों के कपड़े उन कांटों से खराब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढि़या के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। वह आराम से रहती और खुब मोती बांटती।



महिलाओं की भागीदारी बढ़ी
रामनवमी के अवसर पर अखाड़ों पर अक्सर पुरूषों का जमवाड़ा होता था। पूजा-पाट से लेकर जुलूस तक पुरूषों की भागीदारी रहती थी, लेकिन अब महिलायें  अपनी दस्तक दे चुकी है। जुलूस में नाचने गाने से लेकर अखाड़े और मेला मैदान तक झंडा पहुंचाने का काम महिलायें बखूबी निभा रहीं है। ऐसे मौको पर महिलाओं की भागीदारी महिला शसक्तिकरण का उदाहरण है।

अयोध्या की रामनवमी
अयोध्या में रामनवमी बहुत धूमधाम से मनायी जाती है। इस दिन मेला लगता है। देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु इस मेले में पहुंचते हैं। यह त्रेता-युगीन सूर्यवंशीय नरेशों की राजधानी रही। पुरातात्विक दृष्टि से भी महत्त्व रखती है। रामनवमी के दिन भगवान राम के जन्मोत्सव के पावन पर्व पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु अयोध्या की सरयू नदी के तट पर सुबह से ही स्नान कर मंदिरों में दर्शन तथा पूजा करते हैं। इस दिन जगह-जगह पर संतों के प्रवचन, भजन, कीर्तन चलते रहते हैं। अयोध्या के प्रसिद्ध कौशल्या भवन मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। अयोध्या के प्रमुख दर्शनीय एवं ऐतिहासिक स्थलों में श्रीराम जन्मभूमि के अलावा कौशल्या भवन, कनक भवन, कैकेयी भवन, कोप भवन तथा श्रीराम के राज्याभिषेक का स्थान रत्न सिंहासन दर्शनीय हैं। 



बोकारो आये थे भगवान श्रीराम !
धार्मिक मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम बोकारो आये थे। वर्तमान में बोकारो के विभिन्न स्थलों पर उनके आने के अलग-अलग प्रसंग की जनश्रुतियां हैं। सभी स्थलों का विशेष धार्मिक महत्व है। चास-धनबाद मुख्य पथ पर पानी टंकी से करीब 10 किमी दूर पूरब दिशा में स्थित कुम्हरी पंचायत में दामोदर नदी पर बारनी घाट है। कहा जाता है कि वनवास के दौरान पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम यहां से होकर गुजरे थे। वह वनवास का 12वां वर्ष और चैत माह की 13वीं तिथि थी। रात्रि विश्राम के बाद सुबह रवाना होने से पहले भगवान राम ने पत्नी व भाई के साथ बारनी घाट में स्नान किया था। इसे पकाहा दह के नाम से भी जाना जाता है। यहां कई जगहों पर पौराणिक पत्थर और चरण पादुका भी हैं। इस स्थल का महत्व हरिद्वार, त्रिवेणी और पुष्कर की तरह है। जिस तिथि को श्रीराम ने यहां स्नान किया था, प्रत्येक साल उस तिथि में स्नान करने श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं। लोगों का मानना है कि इससे पुण्य मिलती है।

कसमार प्रखंड की मंजूरा पंचायत में राम-लखन टुंगरी व हिसीम पंचायत में डुमरकुदर गांव के पास मृग खोह स्थित है। दोनों जगहों पर श्रीराम के आने का प्रसंग है। कहा जाता है कि माता जानकी की जिद पर स्वर्ण मृग की तलाश में भगवान राम इन दोनों जगहों पर आये थे। यहां कि पहाड़ी पर जिस जगह तीर चलाये थे, वहां से दूध की धारा निकल पड़ी थी। कहा जाता है कि  एक चरवाहा की शरारत के कारण दूध धारा पानी में तब्दील हो गयी। यहां दो जगहों पर भगवान राम के पदचिह्न हैं। पहाड़ी के नीचे वाले पदचिह्न पर मंदिर का निर्माण किया गया है। दूसरा पदचिह्न 200 फुट की ऊंचाई पर है। यहां प्रत्येक साल मकर संक्रांति पर विशाल टुसू मेला लगता है।  राम-लखन टुंगरी के बारे में भी ठीक ऐसी ही मान्यता है।

पूरे देश में प्रसिद्ध है झारखंड और हजारीबाग की रामनवमी
पूरे झारखंड में महावीरी झंडा, पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र के परिचालन के साथ पौराणिक मिथकों से जुडी झांकियां निकली जाती हैं। रांची और हजारीबाग में इस पारंपरिक आयोजन का अपना ही अंदाज और इतिहास है। हजारीबाग की रामनवमी की बात ही कुछ और है। सारे देश में जब रामनवमी का उल्लास ढलान पर होता है तब हजारीबाग में यह आयोजन जोर पकड़ रहा होता है। चैत माह के शुक्ल पक्ष की दशमी से आरम्भ झांकियों का क्रम त्रयोदशी की शाम तक जारी रहता है। यहां आस-पास के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से भी सैकड़ों झांकियां शामिल होती हैं जिन्हें देखने के लिए अपार जनसमूह उमड़ पड़ता है। महिलायें और बच्चे अपनी सुविधानुसार जुलूस मार्ग के मकानों की छतों पर कब्जा जमा लेते है और जुलूस का अनंद उठाते हैं। यहां प्रशासन सबसे ज्यादा मुस्तैद होती है। प्रशासन की प्राथमिकता होती है कि पारंपरिक मार्ग से जुलूस शांतिपूर्वक गुजर जाये। प्रारंभ में यहां आयोजन महावीरी झंडों और पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र के प्रदर्शन और परिचालन के रूप में एक प्रकार का शक्ति पर्व ही था, मगर युवा पीढी पर हावी होती आधुनिकता से यह पर्व भी अछूता नहीं रहा है। फिर भी रामनवमी के इस स्वरुप का अवलोकन अपने आप में एक अलग अनुभव है।



आठ दशकों से निकल रहा है पलामू में जुलूस
पलामू में रामनवमी का त्योहार विशेष श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां के रामनवमी अखाड़ा का इतिहास बहुत पुराना है। जिला मुख्यालय में आठ दशक पूर्व से जुलूस निकल जा रहा है। इसकी शुरुआत 1932 में शहर के हरिजन मुहल्ला से हुयी थी। यह इलाका अब आदर्शनगर के नाम से जाना जाता है। शहर के बड़े-बुजुर्गो ने हिंदु मुस्लिम, सिख ईसाई, हम सब हैं भाई-भाई की लोकोक्ति को चरितार्थ किया। संगठित होकर रामनवमी का त्योहार मनाने की यह परंपरा आज भी कायम है। यहां की जुलूस और रथयात्रा अनोखा एंव दर्शनीय होता है।

श्रीराम के आदर्श को जीवन में उतारने की जरूरत
भगवान विष्णु ने असुरों का संहार करने के लिए राम रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। तब से लेकर आज तक मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग कर चौदह वर्षों के लिए वन चले गए। अपने जीवन में धर्म की रक्षा करते हुए अपने हर वचन को पूर्ण किया। आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है। तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में भगवान राम के जीवन का वर्णन करते हुए बताया है कि श्रीराम सुबह अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करते थे जबकि आज चरण स्पर्श तो दूर बच्चे माता-पिता की बात तक नहीं मानते हैं। परिस्थिति यह है कि महापुरुषों के आदर्श सिर्फ टीवी धारावाहिकों और किताबों तक सिमटकर रह गए हैं। नेताओं ने भी सत्ता हासिल करने के लिए श्रीराम नाम का सहारा लेकर धर्म की आड़ में वोट बटोरे पर राम के गुणों को नहीं अपनाया। यदि राम की सही मायने में आराधना करनी है और राम राज्य स्थापित करना है तो उनके आदर्शों और विचारों को आत्मसात करना होगा। तभी रामनवमी मनाने का संकल्प सही होगा।


मेरे तन में राम, मेरे मन में राम मेरे तन में राम, मेरे मन में राम Reviewed by saurabh swikrit on 8:39 am Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

Blogger द्वारा संचालित.