लोकतंत्र बना मजाक
सौरभ स्वीकृत
सोलहवीं लोकसभा चुनाव अपनी चरम पर था । नेता-राजनेता अपनी- अपनी जीत का दावा ठोंक रहे थे । एक दूसरे के उपर किचड़ उझालना सबने प्रवृति में दिख रहा था । सभी नेता एक दूसरे को गाली तो दे ही रहे थे साथ ही जनता को मुर्ख भी बना रहे थे । कहीं और की तो नहीं जानता लेकिन अपने राज्य झारखंड में मैं यह सब देख रहा हूं। यहां की राजनीति वैसे भी मजाक बनकर रह गयी है। यहां के नेताओं में शर्म नाम की कोई चीज ही नही है। और रहे भी कैसे बेशरम जो ठहरे। यहां लगभग सभी पार्टी को काम करने का मौका जनता ने दिया लेकिन कुछ नहीं हुआ। अपने क्षेत्र और शहर का विकास कम और खुद का विकास ज्यादा किए। आज कोई भी राजनीतिक पार्टी की छवि अच्छी नहीं है। सबने जनता का भरोसा खो दिया है।
सूबे के किसी भी लोकसभा क्षेत्र में संतोषजनक काम नहीं हुआ है। खासकर लोहरदगा, पलामू, खुंटी, जैसे पिछड़े इलाकों की स्थिती तो और भी बदत्तर है। अगर बात करे लोहरदगा के सांसद का तो इनका पता ही नहीं चलता । कई ऐसे सासंद है जो काम करे या न करे लेकिन मीडिया में छाए रहते हैं। इन्हें छपास की बीमारी होती है। लेकिन ये महराज तो वो भी नहीं कर सकते। न संसद में अपने क्षेत्र का आवाज उठाते हैं, न क्षेत्र का भ्रमण करते हैं, न किसी से कोई मतलब होता है। आखिर किस बिल में घुंस जाते हैं ये। इस बार यह हल्ला हुआ कि उन्हें टिकट नहीं मिलने वाला है, फिर भी ये निश्चित दिखे। कहते फिरते कि देखते हैं कैसे टिकट नहीं मिलता है। हम संघ के खास हैं। और हुआ भी यही आखिरकार इन्हें ही टिकट मिला। इस लोकसभा क्षेत्र की 95 प्रतिशत जनता इन्हें नाकार चुकी थी लेकिन इनके पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर भरोसा जताते हुए लोगों ने इन्हें ही वोट कर दिया। यहां की जनता तो यह साफ तौर पर कह रही थी कि प्रधानमंत्री जरूरी है, प्रत्याशी तो मजबूरी है। जिस संसद के बारे में ऐसा बोला जाए उसका क्षेत्र में छवि क्या होगा इस बात का अंदाजा कोई भी लगा सकता है।
अगर इन सब इलाको को छोड़ दिया जाये तो सूबे की राजधानी में नजर डालते हैं। इस क्षेत्र में तो एक ही नेता 10 सालो से राज कर रहा है। लेकिन उनसे उनके क्षेत्र के बारे में पूछ दिया जाए तो शायद पसीने निकल जायेंगे। इस बार उनका टिकट कट ही चुका था लेकिन कार्यकर्ताओं के जिद्द की वजह से आलाकमान ने इन्हे ं टिकट दिया। इन दस सालों में इन्होने सिर्फ अपना भला किया। केन्द्र में मंत्री पद भी मिला । कुछ ही महिनों में मंत्रीपद छोड़ना पड़ा। भ्रष्टाचारी जा निकले। पद मिला की नहीं, बस दुरूपयोग शुरू कर दिया।
राजधानी की राजनीति इतनी गंदी होगी इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। जो पिछले दस सालो से सांसद रहे, उनको भी अपने जीत पर भरोसा नहीं। होगा भी कैसे खुद का पेट जो भरे हैं। एक बार मैं चुनाव में लगे एक कार्यकर्ता से मिला। उनसे रांची लोकसभा क्षेत्र से जीतने वाले उम्मीदवार को लेकर बहस छिड़ गयी। हमने दसरे पार्टी का नाम लिया तो वो भड़क गये साथ ही दावा ठोकने लगे कि इस बार इस क्षेत्र में हैट्रिक लगने वाला है। वह किसकी बात कर रहा था शयद आप समझ चुके होंगे। जी, हां उसी सांसद के बारे में जो पिछले दस साल से इस क्षेत्र का राजा बने बैठे थे। उसने कुछ एक- दो बातें ऐसी कही जो मुझमें उस प्रत्याशी के बारे में जानने के बारे में रूचि पैदा कर दिया। मैं यह जानने को आतुर था कि वो इंसान मुझसे चैलेंज लगाने के लिए तैयार कैसे हो गया। मै यह भी जानता था कि वह जो भी बोलेगा काफी हद तक सही होगा क्योकि उस प्रत्याशी का वो कार्यकर्ता जो था। उसने मुझे एक ऐसी बात बतायी जिसने मेरे मन को झिकझोर कर रख दिया। उसने बताया कि अमूक प्रत्याशी ने इस बार एक अरब रूपया खर्च किया है चुनाव में। दम भर रूपया बांटा है। 17 अप्रैल को चुनाव होना है और वो दो दिन पहले यह सब बात बता रहा है। यह भी कहा कि कल तो दो लाख रूपया सिर्फ एक मंदिर (पहाड़ी मंदिर) में बांट कर आया है। इन सब बातों को सुनकर मै तो एकदम सन्न रह गया। उसने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि लोकतंत्र बिक चुका है। वोट मांगे नहीं खरीदे जा रहे हैं।
राजधानी के दूसरे पार्टी के बारे में बात करे तो वह भी काफी फलदार और मालदार है। छवि तो उसकी साफ है क्योकि वो किसी भी काम को इतनी सावधानी से करते हैं कि किसी को कुछ पता ही नहीं चलता। किसी को पता भी चले तो उसे भी फल खिला कर मुंह चुप कर देते हैं। इनका चुनाव चिन्ह भी एक फल है। 17 अप्रैल के चुनाव से दो दिन पूर्व यानि 14 अप्रैल की रात लगभग 11.30 में एक मीडिया आउस में खबर आती है कि उस पार्टी के एक विधायक 20 लाख रूपये के साथ पकड़ा गया। कहीं बांटने के लिए जा रहा था। मैं वहीं पर अपना काम कर रहा था। इस बात पर गौर तो किया लेकिन रात होने कि वजह से थोड़ा देर ही रूका और फिर वहां से चल दिया। उस खबर को लेकर मुझे रात भर बेचैनी होती रही। मै उसके बारे में जनना चाहता था। अगले दिन सुबह उठकर बिना कुछ किए सारा अखबार पलट दिया। सारे न्यूज चैनलों को देखा, लेकिन वह खबर मुझे कहीं दिखायी नहीं दिया। मै समझ गया कि सबकुछ मैनेज कर लिया गया। मै उस दिन शाम में एक रिर्पोटर से मिला जिससे मुझे पूर्व रात इस खबर की जानकरी मिली थी। मैं बातों-बातों में उनसे यह पूछ दिया कि- भईया रात वाली खबर कहीं देखने को नहीं मिला। वो हंसते हुए बोले- बाबू अभी तुम बच्चे हो, यह सब समझने में टाईम लगेगा। जब मै जिद किया तो उन्होने बताया कि- खबर सही थी, लेकिन सबकुछ मैनेज कर दिया गया, और सारी बातें डिटेल में बतायी।
16 मई रिजल्ट के दिन मै दिल्ली में था। रांची समेत तमाम लोकसभा क्षेत्रों के बारे में पल पल खबर ले रहा था। वैसे तो सभी जगहों के परिणाम जानने को लेकर मै आतुर था। मन में बस यही चाह थी कि कोई अच्छा प्रत्याशी ही जीते। मै यह तो नहीं जानता था कि कौन क्या है लेकिन बस यही चाहत थी कि जिसने गरीबी को करीब से देखा हो वही जीते। जिन तमाम पार्टियों और नेताओं के बारे में यह सुन चुका था कि रुपये के राजनीति कर रहे हैं। भोले - भाले जनता को बहला फुसलाकर वोट लेने का जुगाड़ कर रहेे थे,ऐसे नेताओं के बारे में मेरी भगवान से प्रार्थना थी कि वै हार जायें। नहीं तो जितना खर्च कर रहें है उतना कमाने के फिराक में सबकुछ बर्बाद कर देंगे। भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। शयद भगवान को भी यही मंजुर था कि ऐसे लोग नहीं जीते।
जो लोग जीत कर आये हैं उनके बारे में बस यही उम्मीद लगाये हुए हैं कि जनता के लिए काम करें। मोदी ने अपनी सरकार गरीबों को समर्पित किया है। आशा है कि उनके तमाम सांसद उनके भावनाओं को समझेंगे और अपने क्षेत्र के विकास के लिए काम करेंगे। अगर इन्होंने अपने फंड का 70-80 फीसदी रुपया भी खर्च किया तो विकास की आंधी आ जायेगी। जनता ने जिन उम्मीदों के साथ वोट दिया है, उनकी उन उम्मीदों पर हताशा और निराशा का गाज नहीं गिरेगा। आगे क्या होगा यह तो समय ही बतायेगा। हम तो बस इंतेजार कर सकते हैं।
लोकतंत्र बना मजाक
Reviewed by saurabh swikrit
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11:05 am
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