आगे बढ़ना है क्या?
99 प्रतिशत युवा हैं भ्रमजाल में
मैं लगभग पूरे भारत में पूर्वी राज्यों को छोड़कर सरकारी और निजी कार्यो से आता-जाता रहा हूं। कई बार देश के शीर्षस्थ संस्थाओं में भी युवाओं से आमने-सामने बात होती है। अभी-अभी 12वीं के राज्य और केन्द्र के स्कूलों के परीक्षा परिणाम भी आये हैं जो बेहतरीन हैं।
हमारे राज्य झारखंड सहित अन्य पिछडे़ राज्यों में युवाओं की मानसिकता बदलने की आवश्यकता और उसके परिणाम को लेकर मैं चिंतित रहता हूं। सबसे पहले युवाओं में विकास की मानसिकता होनी चाहिए। मैंने महसूस किया है कि जिस प्रकार हमारे राज्य के शहरो और गांव में युवा घंटो पान की दुकान जिसे हम पान गुमटी कहते हैं वहां खडे़ रहते हैं वैसा विकसित राज्यों में दिखायी नहीं देता है। हर समाज के युवाओं को देखकर ही उस समाज के विकास का अंदाज लगाते हैं। ध्यान दें कि हमारे युवा किस प्रकार के ड्रेंस सेंस में जी रहे हैं। कई संस्थानों के छात्र हमारे पास आते हैं जिनमें दो बड़ी कमियों को मैं रेखाकिंत कर रहा हूं।
पहला ड्रेस सेंस: आप जिससे मिलने जा रहे हैं जिस कार्यालय या संस्थान में जा रहे हैें वहां आपको पहला सम्मान आपका डे्रेस सेंस दिलाता है। इसका आशय मंहगे डे्रस से नहीं है इसका आशय है कि आपने किस प्रकार के कपड़ पहन रखे हैं। यह बात लड़को और लड़कियों दोनो पर लागू होता है। निश्चित आपके डे्रेस सेंस से आपका करियर, आपका जॉब, आपका इंटरव्यू, आपका इंट्रेनशिप, आपका प्रोजेक्ट और अंत में आपका मिलने वाले पर प्रभाव तय होता है। आप फिल्मों या वर्तमान आभासी दुनिया से प्रभावित न होकर व्यावहारिक और कामकाजी दुनिया में किस प्रकार का आचरण होना चाहिए इस पर ध्यान दें। कई बार अपने ड्रेस सेंस से युवक-युवतियों को अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ता है लेकिन वे समझ ही नहीं पाते और विपरीत स्थितियों में उलझ जाते हैं।
कम्यूनिकेशन स्कील: आप किसी से भी बात करने के क्रम में अपनी विनम्रता को न छोड़े। आपकी वाणी से ही आपको सम्मान मिल सकता है और व्यवहार से ही सहयोग। इसके बिना किसी का काम नहीं चलता यह याद रखे। युवाओं को विशेषकर इन बिंदुओं पर सावधान होने की आवश्यकता है। कई बार मुझसे मिलने और इंट्रेनशिप करने आये युवक युवतियों को यह लगता है कि उन्होंने इस काम के लिए संस्थान को पैसा दिया है इसलिए वे अपनी भाषा और व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रखते हैं ऐसे में कोई भी अधिकारी उनका सहयोग नहीं करता इससे उन्हें अच्छी ट्रेनिंग नहीं मिल पाती है। आज युवाओं के पास पहले की तुलना में ज्यादा सुविधा है विशेषकर इंटरनेट और व्हाटसप के जमाने में। लेकिन उनके पास मानवीय गुणों का लगातार कम होना चर्चा का विषय बना हुआ है।
आज में एक सच्ची घटना का जिक्र करना चाहूंगा। हमारे एक परिजन का पुत्र बेहतरीन मार्क सहित 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद एक राष्ट्रीय इंजीनियरिंग संस्थान के इंट्रेस एग्जाम में ऑनलाइन शामिल होता है। परीक्षा के बाद वह बिना किसी हिचक के वह बताता है कि जनरल नॉलेज के 25 सवाल उससे नहीं बने क्योंकि वह कभी समाचारों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता है। विषयों को पढ़ना और बचे समय में मोबाइल पर गेम और चैटिंग करना उसका हॉबी था।
क्या यह समस्या आज अधिकांश युवाओं की नहीं है। सिर्फ किताबी ज्ञान के कारण जो नुकसान हो रहा है उसका अंदाज लगाना कठिन है।
ऐसे स्वभाव से क्या करना है जैसे प्रश्न और अधिक कठिन हो जाते हैं साथ ही दुख से मुझे कहना पड़ रहा है कि इस सवाल का हल आज का युवा अपने अभिभावक से चाहता है। यह कितनी बड़ी नाइंसाफी है।
आज दिल्ली, बंगलूरू, रांची, पटना और कोलकता सहित बड़े शहरों में रोजगार के लिए प्रयासरत या कहे कि भटकते युवाओं के लिए उनका व्यवहार, बोल चाल का ढंग, डे्रेस सेंस बड़ी पूंजी है।
मेरे पास एक लड़की इंट्रेनशिप के लिए आई। उसने बीबीए की पढ़ाई की थी। उसने मुझसेकहा कि वह एमबीए करना चाहती है लेकिन उसकी परिवारिक स्थिति आर्थिक रूप से अच्छी नहीं है। उसके विनम्र स्वभाव और सच्ची भावना को देखकर मैंने कहा कि अगर वह बीबीए में अच्छा करती है अपने को प्रूफ करती है तो उसे निजी क्षेत्र में एक सम्मान जनक जॉब और एमबीएस कराने के लिए आर्थिक सहायता दोनो मिल जाएगा। आज मदद करने वालों की कमी नहीं है आवश्यकता है आपके व्यवहार में सच्चाई, शालीनता, सदव्यवहार और संस्कार झलके। अनुभवी लोगों को ठगने का प्रयास करते युवाओं की टोली को भी मैने नजदीक से झेला है। अवसरवादी, झूठे, कामचोर, समाज से कटे, युवाओं के लिए एक निश्चित सीमा के बाद संभावना कम होती जाती है।
माता-पिता की भूमिका: वर्तमान समय में आधुनिक कपड़े बुरे नहीं है लेकिन उसे कब और किस प्रकार पहना जाय इस पर माता-पिता की सलाह को महत्व देना चाहिए। उनके अनुभव को समझें। अपने दिमाग से काम लें बदलती दुनिया में अपने का फिट करें। माता-पिता अपने बच्चों को सही दिशा देने में सबसे बड़े कारक हैं। वे जैसी जिंदगी जीते हैं उसका सीधा असर बच्चों पर होता है। इस बात को वे समझे कि उन पर बड़ा दायित्व है। आर्थिक स्थिति बेहतर हो फिर भी दिखावा से युवाओं को बचायें।
आज देश के युवा 20 साल के उम्र में अपनी सफलता का झंडा बुलंद कर रहे हैं। करने को बहुत कुछ है लेकिन आंरभ अपने आप से करें। अगर अपने आप को नहीं समझे तो दुनिया को समझने की बात करना बेइमानी होगी। अपने आप को शानदार बनायें, जानदार बनायें, आपको देखकर आप पर विश्ववास हो आपके साथ होने पर आत्मविश्वास हो आपके कार्य से देश को लाभ हो। सीएमए सह मोटिवेटर
आगे बढ़ना है क्या?
Reviewed by saurabh swikrit
on
6:28 am
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