केजरीवाल को कुर्सी की चाहत
केजरीवाल को कुर्सी की चाहत
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की जनता से सरकार बनाने या न बनाने पर राय मांगी थी। लगभग साढ़े तीन लाख लोगों ने अपनी राय भेजी। भेजे गए राय में सिर्फ 2.44 फीसदी लोगों ने अरविदं केजरीवाल को सरकार बनाने के पक्ष में अपनी राय दी। बावजूद इसके केजरीवाल सरकार बना रहें हैं।
इससे यह बात तो साफ है कि केजरीवाल को गद़दी पर जाने का पूरा मन है। लेकिन इतने देर से इनका मात्र एक ड्रामा चल रहा था। लोगों को अपनी ओर खीचने का यह एक नया फॉमूला केजरीवाल ने अपनाया। इससे लोगों को लगा कि सरकार बनाने के लिए उनकी राय ली जा रही है। मात्र 2.44 प्रतिशत के हां को मान कर आम आदमी पार्टी सरकार बना रही है। केजरीवाल बतौर मुख्यमंत्री 26 दिसंबर को रामलीला मैदान में शपथ लेंगे।
इनकी पार्टी में ज्यादातर विधायक नए हैं जो पहली बार सरकार में मंत्री बनने का सपना पूरा करेंगे। लेकिन क्या इनसे दिल्ली जैसी बड़े शहर को चला पाने में समर्थ होंगे। जब शिला दीक्षित जैसी अनुभवी मुख्यमंत्री दिल्ली को नहीं संभाल सकी तो फिर इन लोगों से क्या उम्मीद कर सकते हैं। केजरीवाल कहते हैं कि विधानसभा के बाद अब लोकसभा की बारी है। शिला को हराये हैं अब मोदी को हरायेंगे। देश की आर्थिक स्थिति को वही ठीक करेंगे। लेकिन उन्हे यह देखना चाहिये कि चितंबरम़ जैसे अर्थशास्त्री देश की आर्थिक नीति को समझ नहीं पाये और इसे ठीक करने में असमर्थ रहे तो वो क्या चीज है। बिजली का उत्पादन इतना मंहगा है और वो कहते हैं कि आधे दाम में बिजली देगें, सात सौ लीटर पानी रोज दिन मुफत देंगे, झोपड़ी में रहने वालों को पक्का मकान देगें। पर क्या उनके पास इतना पैसा है? एक बार भी विधायक या सरकार में शामिल नहीं हुए हैं लेकिन उनका भाषण सुन कर ऐसा लगता है जैसे उन्हें सबकुछ मामूल है। यह कुछ नहीं है सिर्फ लोगों को सपना दिखाने का काम है।
कांग्रेस को दिन-रात गाली देने के बाद आज उसी से मिलकर सरकार बना रहे हैं। दिल्ली की जनता के कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिये आम आदमी पार्टी को बहुमत दी। लेकिन केजरीवाल ने उन्हे फिर से सत्ता में वापसी करा दी। आने वाले लोकसभा चुनाव में केजरीवाल तो चुनाव में आयेंगें ही। उन्हें वहीं पता चलेगा कि दिल्ली की जनता उनसे कितना खुश है। कांग्रेस के साथ सरकार बना कर आम आदमी पार्टी सही कर रही है या गलत यह तो वक्त ही बतायेगा। लेकिन एक बात तो साफ है कि केजरीवाल को सत्ता की भुख थी, यही कारण था कि केजरीवाल ने उन्हें पहचान दिलाने वाले अपने गुरू का साथ छोड़ा। आम आदमी पार्टी यह माने या न माने लेकिन यह बात तो सत प्रतिशत सच है कि अन्ना हजारे के कारण ही उनको पहचान मिली और लोगों ने उनकी पार्टी को समर्थन दिया। खैर अब जो भी हो लेकिन केजरीवाल का सपना तो पूरा हो गया। सरकार चले या न चले, दिल्ली की जनता की समस्यां दूर हो या न हो। दिल्ली के मुख्यमंत्रियों के लिस्ट में तो केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का नाम दर्ज हो ही गया।
केजरीवाल को कुर्सी की चाहत
Reviewed by saurabh swikrit
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11:55 am
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