राजनीति की दूनिया में काटूर्न



सौरभ स्वीकृत
                 
आज के दौर में काटूर्न अभिव्यक्ति, विचार, सोच, और संदेश को अभिव्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम बन चूका है। राजनीति की दूनिया में  तो यह  अभिव्यक्ति  को दिखाने में अनोखा और अहम भूमिका अदा करा रहा है। चाहे किसी की माजाकिया चेहरा दिखाना हो या फिर किसी पे व्यंग करना हो काटूर्न के बिना पूरा नहीं होता है। मीडिया अपने क्रिएटिविटी को दिखाने के लिए काटूर्न का ही सहारा ले रहें हैं। सोसल मीडिया से लेकर प्रिंट और इलेक्टॉनिक मीडिया सभी काटूर्न के जरिए विचार अभिव्यक्त कर रहें हैं। मीडिया वेबसाइट के अलावे अन्य वेबसाइट में भी काटूनों का जलवा देखा जा सकता है। किसी भी लेखक के ब्लॉग, या प्रकाशित लेख को देखें तो काटूर्न अवश्य ही देखने को मिल जाता है। मुख्­य रूप­ से कार्टून का चित्र एक ऐसा व्­यंग्य और कटाक्ष होता है जो देखने व पढ़ने पर चेहरे पर मुस्­कान तो लाता है साथ ही उसमें छिपी संदर्भ और जुड़ी विसंगति की यथार्थ को भी सामने ले आती है।

देश के सभी राजनीतिक पार्टियां मिशन 2014 में पूरे जोश खरोश के साथ लग गयें हैं। एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप में लीन हो गए हैं। दल-बदल की भी खबरें जोरों से आ रही है। सभी पार्टियों में टिकट को लेकर खिंचातानी शुरु हो गया है। कोई निराश तो कोई खुशी माना रहा है। सभी राजनीति में जोर अजमाशी करने को बेताब हैं। इन सब चीजों को फोटो के माध्यम से कम और काटूर्न के जरिए ज्यादा दिखाया जा रहा है। इसके जरिए  अंगड़ाई ले रहे पात्र और संवाद की समसामयिक धटना की स्थिति को बड़ी ही सहजता और मनमोहक ढंग से दिखाया जा रहा है।

राजनीति की दूनिया में काटूर्न का इस्तेमाल करना कोई नयी बात नहीं हैं। यह आजादी  काल से ही चला आ रहा है। एक बार 1949 में मशहूर कार्टूनिस्ट केशव शंकर पिल्लै ने कार्टून के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की थी कि संविधान निर्माण में जो देरी हो रही है, करीब तीन साल का वक्त लगा, उसके लिए अंबेडकर जिम्मेदार हैं। जाहिर सी बात है कि वह काटूर्न व्यंग्यातमक रहा होगा। गंम्भीर बात को बड़ी सहजता के साथ कह दिया गया था। यह कार्टून किसी जाति विशेष पर नही बल्कि उस संविधान विशेषज्ञ पर बनाया गया है जिसे देश का संविधान बनाने की  जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। इस पर काफी बवाल भी हुआ था। नेताओं ने इस काटूर्न को बाबा साहब का मजाक बताया था। लिहाजा यह मार अभिव्­यक्ति की स्­वतंत्रता के उस अधिकार पर पड़ी, जिसे संविधान में खुद बाबा साहब आंबेडकर ने किसी भी माध्यम से अभिव्यक्ति को प्रकट करने की छुट दी हुई थी। इस काटूर्न को दिखाने का मतलब सिर्फ इतना था कि सविंधान निर्माण में तजी लायी जाए। उसका उद्देश्­य डॉ आंबेडकर को अपमानित करना अथवा उनका उपहास करना कतई नहीं था। फिर भी इस काटूर्न ने संसद में अफरा तफरी मचा दी थी । बाद में उसी कार्टूनिस्ट को सरकार ने 1956 में पद्मश्री, 1966 में पद्म भूषण और 1977 में पद्म विभूषण से नवाजा था। इस पर पंडित जवाहर लाल नेहरू , जिनकी  श्री शंकर से अच्छी दोस्ती थी ने शंकर को अपनी सलाह दी थी- शंकर, मुझे भी मत बख्शना!।



                                                  काटूर्न जिसपर संसद में हंगामा हुआ था











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