अनोखा है चंदवा का नगर मंदिर
सौरभ स्वीकृत
लातेहार जिले के चकला (चंदवा ) में स्थित मां नगर भगवती का मंदिर अनोखा है। यह माना जाता है कि यहां मांगी जाने वाली सभी कामनाएं पूरी होती है। यह मंदिर दसवीं शताब्दी में टोरी के शाही राजघराने द्वारा बनवाया गया है। पहले मंदिर राजघराने के स्वामित्वा में था। अब इसका संचालन शाही और मिश्र परिवार संयुक्त रूप से मिलकर करते हैं। श्रद्धालु पूजा-पाठ से लेकर बलि और वैवाहिक कार्यक्रमों के लिए यहां आते हैं। खासकर दुर्गा और काली पूजा के समय काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन और पूजा के लिए आते हैं। चकला गांव में निवास करने वाले सभी जाति के लोगों की इस मंदिर से आस्था जुड़ी हुयी है। यहां भोजन और रात्रि विश्राम की अच्छी व्यवस्था है।
पूजा की परंपरा-
यहां मंदिर के पुजारी गर्भ गृह में जाकर श्रद्धालुओं के प्रसाद का भगवती को भोग लगाकर देते हैं। श्रद्धालुओं को अंदर प्रवेश की मनाही होती है। प्रसाद के रूप में मुख्य रूप से नारियल और मिसरी चढ़ायी जाती है। मोहनभोग भी चढ़ाया जाता है, जिसे मंदिर के रसोइया ही बनाते है। दोपहर में पुजारी भगवती को उठाकर रसोई में ले आते हैं। वहां भात, दाल और सब्जी का भोग लगता हैं, जिसे पुजारी स्वयं बनाते हैं। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं द्वारा बकरे की भी बलि दी जाती है। मंदिर में दो बार विधिवत आरती की जाती है। मंदिर के पश्चिमी भाग में स्थित मादागिर पर्वत पर मदार साहब का मजार है। बताया जाता है कि मदार साहब मां उग्रतारा के बहुत बड़े भक्त थे। तीन वर्षों में एक बार इनकी भी पूजा होती है, और काड़ा की बलि दी जाती है। बाद में उसी खाल से मां उग्रतारा मंदिर के लिए नगाड़ा बनाया जाता है। इसी नगाड़े को बजाकर मंदिर में आरती की जाती है। जब कोई भक्त मन्नत मांगता है और उसकी मन्नत पूरी हो जाती है तो मंदिर परिसर में पांच झंडे गाड़े जातें हैं। एक सफेद झंडा मदार साहब की मजार पर भी गाड़ा जाता है।
यहां मंदिर के पुजारी गर्भ गृह में जाकर श्रद्धालुओं के प्रसाद का भगवती को भोग लगाकर देते हैं। श्रद्धालुओं को अंदर प्रवेश की मनाही होती है। प्रसाद के रूप में मुख्य रूप से नारियल और मिसरी चढ़ायी जाती है। मोहनभोग भी चढ़ाया जाता है, जिसे मंदिर के रसोइया ही बनाते है। दोपहर में पुजारी भगवती को उठाकर रसोई में ले आते हैं। वहां भात, दाल और सब्जी का भोग लगता हैं, जिसे पुजारी स्वयं बनाते हैं। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं द्वारा बकरे की भी बलि दी जाती है। मंदिर में दो बार विधिवत आरती की जाती है। मंदिर के पश्चिमी भाग में स्थित मादागिर पर्वत पर मदार साहब का मजार है। बताया जाता है कि मदार साहब मां उग्रतारा के बहुत बड़े भक्त थे। तीन वर्षों में एक बार इनकी भी पूजा होती है, और काड़ा की बलि दी जाती है। बाद में उसी खाल से मां उग्रतारा मंदिर के लिए नगाड़ा बनाया जाता है। इसी नगाड़े को बजाकर मंदिर में आरती की जाती है। जब कोई भक्त मन्नत मांगता है और उसकी मन्नत पूरी हो जाती है तो मंदिर परिसर में पांच झंडे गाड़े जातें हैं। एक सफेद झंडा मदार साहब की मजार पर भी गाड़ा जाता है।
रहस्यों से भरा है पूरा क्षेत्र
मां भगवती के दक्षिणी और पश्चिमी कोने पर स्थित चुटुबाग नामक पर्वत पर मां भ्रामरी देवी की गुफायें हैं, जहां कई स्थानों पर बूंद-बूंद पानी टपकता रहता है। करीब सत्तर फीट नीचे सतयुगी केले का वृक्ष है, जो वर्षों पुराना होने के बावजूद आज भी हराभरा है। इसमें फल भी लगता है। वहां मौजूद एक पत्थर के छिद्र से तीव्र गति से पानी हमेशा निकलता रहता है, मगर यह पानी सिर्फ केले के वृक्षों को ही प्राप्त होता है। इस मंदिर में हजारों वर्ष पूर्व चकला स्टेट के राजा द्वारा मिटटी की चारदीवारी करायी गयी थी। जिसमें सात दरवाजे हैं।
मां भगवती के दक्षिणी और पश्चिमी कोने पर स्थित चुटुबाग नामक पर्वत पर मां भ्रामरी देवी की गुफायें हैं, जहां कई स्थानों पर बूंद-बूंद पानी टपकता रहता है। करीब सत्तर फीट नीचे सतयुगी केले का वृक्ष है, जो वर्षों पुराना होने के बावजूद आज भी हराभरा है। इसमें फल भी लगता है। वहां मौजूद एक पत्थर के छिद्र से तीव्र गति से पानी हमेशा निकलता रहता है, मगर यह पानी सिर्फ केले के वृक्षों को ही प्राप्त होता है। इस मंदिर में हजारों वर्ष पूर्व चकला स्टेट के राजा द्वारा मिटटी की चारदीवारी करायी गयी थी। जिसमें सात दरवाजे हैं।
आज भी जीवंत है परंपरा
मां उग्रतारा नगर मंदिर में राज दरबार की व्यवस्था आज भी कायम है। यहां पुजारी के रूप में मिश्रा और पाठक परिवार के अलावा बकरे की बलि देने के लिए पुरुषोत्तम पाहन, नगाड़ा बजाने के लिए घांसी, काड़ा की बलि देने के लिए पुजारी नियुक्त होते हैं।
मां उग्रतारा नगर मंदिर में राज दरबार की व्यवस्था आज भी कायम है। यहां पुजारी के रूप में मिश्रा और पाठक परिवार के अलावा बकरे की बलि देने के लिए पुरुषोत्तम पाहन, नगाड़ा बजाने के लिए घांसी, काड़ा की बलि देने के लिए पुजारी नियुक्त होते हैं।
ठहरने के हैं उत्तम प्रबंध
मंदिर में देश भर के लोग पूजा करने के लिये आते हैं। दूर से आने वाले श्राद्धालुओं के लिए यहां ठहरने का उत्तम प्रबंध है। परिसर में दो चापाकल और दो कुआं हैं। खाने के लिए होटल और ठहरने के लिए धर्मशाला के साथ- साथ किराये के रुम भी मिलते हैं। वर्तमान में मंदिर के उत्तरी भाग में एक विशाल विवाह मंडप है जहां प्रतिवर्ष हजारों लोगों का विवाह सम्पन्न होता है। मंदिर के दक्षिणी भाग के ऊपरी छोर पर एक धर्मशाला है जहां शादी-विवाह होते हैं। इसके अलावा श्रद्धालु भी इसी धर्मशाला में ठहरते हैं।
मंदिर में देश भर के लोग पूजा करने के लिये आते हैं। दूर से आने वाले श्राद्धालुओं के लिए यहां ठहरने का उत्तम प्रबंध है। परिसर में दो चापाकल और दो कुआं हैं। खाने के लिए होटल और ठहरने के लिए धर्मशाला के साथ- साथ किराये के रुम भी मिलते हैं। वर्तमान में मंदिर के उत्तरी भाग में एक विशाल विवाह मंडप है जहां प्रतिवर्ष हजारों लोगों का विवाह सम्पन्न होता है। मंदिर के दक्षिणी भाग के ऊपरी छोर पर एक धर्मशाला है जहां शादी-विवाह होते हैं। इसके अलावा श्रद्धालु भी इसी धर्मशाला में ठहरते हैं।
अनोखा है चंदवा का नगर मंदिर
Reviewed by saurabh swikrit
on
11:17 am
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