अच्छे नंबर नहीं आये, तो कोई बात नहीं
सौरभ स्वीकृत
10वीं और बारहवीं के रिजल्ट आ चुके है। जो बच्चे अपने माता पिता, शिक्षकों और परिवार वालों के उम्मीदो में खरा नहीं उतर पाये उनपर खास दबाव बना हुआ है। कड़ी प्रतियोगिता के इस दौर में अपने को आगे रखना और सबसे बड़ी बात कि अच्छे नंबर लाना एक चुनौती बना हुआ है ताकि अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल सके। दरअसल, कालेजों के कट ऑफ इतने ऊंचे हो गये हैं कि छात्र तनाव में आ जाते हैं। परीक्षा कई बार जीवन-मरण का भी सवाल बन जाती है।
ऐसा नहीं है कि बोर्ड की परीक्षाएं पहले नहीं होती थीं। मगर पहले इतना दबाव नहीं था। इतनी कड़ी प्रतियोगिता नहीं थी। बच्चे कम नंबर लाकर भी अच्छे कॉलेज में दाखिला ले लेते थे। माता-पिता को नसीहत देने के लिए घर में बड़े-बुजुर्ग होते थे ताकि वे बच्चों को प्यार से समझा सकें। आंकड़ें देखें तो कोई नंबर से निराशा होकर या परीक्षा में फेल होने के बाद आत्महत्या की कोशिश नहीं करता था बल्कि पूरी लगन और मेहनत से वह दोबारा पढ़ाई में जुट जाते थे ताकि अगली बार अच्छे नंबर ला पायें। आज कई छात्र यही मानते हैं कि अच्छे से पढ़ाई नहीं की तो ढंग की नौकरी नहीं मिलेगी अैर आजीविका का साधन नहीं रहेगा। अगर आप अच्छे अंक नहीं ला पाते, तो निराश होने की जरूरत नहीं। दूसरे कई क्षेत्रों में विकल्प खुले हैं। कई बार लोग बड़ी डिग्रीयां लेकर भी दूसरे काम करते हैं। इसलिए आप अपनी पसंद के हिसाब से ही करियर का चुनाव करें ताकि कोई तनाव न हो। फिल्म थ्री इडियट्स का वह डायलॉग भले ही कुछ लोगों को महज डायलॉग लगा हो, पर यह बिल्कुल सत्य हैं कि 'बच्चा काबिल बनो, सफलता झक मार कर तुम्हारे पास आयेगी।' अगर इस पंक्ति का मूलमंत्र जहन में उतार लिया जाये, तो परीक्षा का खौफ काफी हद तक कम हो जायेगा।
यह बात सही है कि आज अच्छे कालेजों में एडमिशन के लिए अच्छे अंक लाना बहुत जरूरी है। मगर तनाव लेकर पढ़ाई से अच्छे अंक नहीं आयेंगे बल्कि आप अवसाद व तनाव से घिर जायेंगे। हर साल बोर्ड परीक्षाओं के दौरान छात्रों के साथ साथ माता-पिता की भी काउंसिलिंग की जाती है पर नतीजा वही होता है 'ढाक के तीन पात'। न माता-पिता की सोच में कोई परिवर्तन देखने को मिलता है और न ही छात्रों में। परीक्षाएं पहले भी होती थीं, पर शायद ही काउंसिलिंग की जरूरत पड़ती थी। बच्चे के फेल होने या कम अंक लाने पर माता-पिता सिर आसमान पर नहीं उठा लेते थे बल्कि उसे प्यार से यह समझाते थे कि अगली बार खूब मेहनत कर परीक्षा देना। अगर फिर भी बच्चा कुछ नहीं कर पाता तो उसके लिए कोई दूसरा विकल्प ढूंढ़ते थे।
मगर आज वह दौर नहीं रहा। हर माता-पिता यहीं चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छे नंबर लाये ताकि अच्छे कॉलेज में दाखिला मिले। परीक्षा का डर बच्चों के मन से निकालने के लिए सीसीई लागू किया गया ताकि बच्चे आसानी से परीक्षा दे सकें। मगर इसे लागू करने के बाद भी परीक्षा का भूत सर पर हमेशा सवार रहता है या यों कहें कि स्कूल में शिक्षक, घर में माता-पिता और समाज का माहौल इसे कम नहीं होने देता। परिणाम बेहतर लाने के चक्कर में शिक्षक भी छात्रों पर दबाव बनाये रहते हैं। जरूरी है कि सीसीई को स्कूलों में सही तरीके से लागू किया जाये ताकि छात्र भयमुक्त वातावरण में परीक्षा दे सकें।
परीक्षा को आज सिर्फ बेहतर नौकरी और सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा है। यही खौफ माता-पिता और छात्रों की नींद उड़ा देता है। दरअसल शिक्षा अब धर्नाजन की जरूरत बन गयी है। परीक्षा के नाम पर छात्रों का मूल्यांकन किया जाता है। ग्रेड सिस्टम लागू होने के बाद भी अब तक तुलना करने के तरीके में कोई बदलाव नहीं आया। हर माता-पिता की ख्वाहिश है कि उसका बच्चा अच्छे ग्रेड लाये ताकि समाज में वह सर उठा कर गर्व से कह सके कि मेरा बच्चा बहुत काबिल है। परीक्षा आज भी छात्र की काबिलियत का मापदंड है। होना तो यह चाहिए कि शिक्षा ज्ञान, व्यवहार, नैतिक मूल्यों का हिस्सा बने ताकि आपका बच्चा भविष्य में सफलता हासिल करने के साथ-साथ बेहतर इंसान भी बने।
अच्छे नंबर नहीं आये, तो कोई बात नहीं
Reviewed by saurabh swikrit
on
6:57 am
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