बजट 2016-17 : राहत की उम्मीद
मेक इन इंडिया की पृष्ठभूमि में आनेवाले बजट पर आम लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की सबसे बड़ी चुनौती है। देश के लोगों ने बड़ी उम्मीदों के साथ नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनवायी थी। सरकार के दूसरे बजट से लोगों की आकांक्षाएं सातवें आसमान पर हैं और वो भी तब जब वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था चरमरायी हुई है और देश में भी स्थिति बहुत ज्यादा अनुकूल नहीं है। मानसून की बेवफाई और मांग में वृद्धि के बीच खाद्य सामग्रियों की कीमतों को बांधे रखना सबसे बड़ी चुनौती है। महंगाई सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है। नयी नौकरियों में खास वृद्धि नहीं दिखायी देती। इसके अलावा पारंपरिक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और रीयल एस्टेट में मंदी की छाया है। रीयल एस्टेट तो पिछले कई वर्षों से मंदा चल रहा है। नये प्रोजेक्ट नहीं लग पा रहे हैं। जो पुराने चल रहे हैं उनके खरीदार नहीं मिल रहे हैं। बैंकिंग सेक्टर ने हाथ पीछे खींच लिया है। इस निराशा से उबारना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
ऐसे समय में जरूरत है एक ऐसे सधे हुए बजट की जो लोगों की राहत दे। साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सके। हालांकि वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत की स्थित अन्य देशों के मुकाबले अच्छी है। सबसे बुरी हालत अमेरिका की हो सकती है। विशेषज्ञों ने वर्ष 2016-18 तक में जबरदस्त मंदी आने की आशंका जतायी है। इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। बजट में इन सब पहलुओं को समाहित किया जाना चाहिए। इस साल सातवां वेतन आयोग भी लागू होनेवाला है। उसका बोझ भी सरकार पर पड़नेवाला है। सातवें वेततन आयोग के बाद बाजार की भी स्थिति बदलेगी। महंगाई के और बढ़ने की आशंका है।
मोदी सरकार ने पिछले एक साल में जो कदम उठाये हैं, उनके परिणाम आने में अभी वक्त हैं। जितनी भी परियोजनाएं शुरू हुई हैं उनके पूरे होने में अभी और काफी वक्त लगेगा। उसके बाद ही कोई परिणम दिखेगा। दीर्घकालिक उपायों के तहत किये गये कार्यों का असर भी धीरे-धीरे दिखता है पर जनता को फौरी राहत की उम्मीद है। वह इस इंतजार में है कि उसके अच्छे दिन कब आयेंगे। अच्छे दिनों की आस में उसने एक साल का वक्त तो गुजार दिया है, पर यदि इस साल भी राहत की उम्मीद नहीं दिखी तो उसके अरमानों पर पानी फिर सकता है। नौकरीपेशा लोगों को भी इस बार बजट से काफी उम्मीदें हैं। आय कर में छूट उसके लिए सबसे बड़ी राहत हो सकती है।
बजट 2016-17 : राहत की उम्मीद
Reviewed by saurabh swikrit
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5:41 am
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