आ रहा है बॉट्स का जमाना
क्या आपको पता है कि अब मोबाइल पर ऐप्स बंद होने वाले हैं। इन ऐप्स की जगह ले लेंगे बॉट्स। बॉट्स शब्द आपके लिए अनजाना हो लेकिन जल्द ही ये हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन सकता है। हो सकता है कि मोबाइल ऐप्स को आउट कर मेसेजिंग बॉट्स आपके सेलफोन पर कब्जा कर लें। तकनीक की दुनिया में इसे सॉफ्टवेयर के लेवल पर बड़े बदलाव की आहट की तरह देखा जा रहा है। पहले वेबसाइट्स आयी, फिर ऐप्स और अब बॉट्स का जमाना आने वाला है। इंसान और मशीन के बीच एक नये रिश्ते की शुरुआत हो चुकी है। फिलहाल इंसान को कंप्यूटर पर काम करने के लिए कंप्यूटर की तरह ही बर्ताव करना पड़ता है। मिसाल के तौर पर फलां चीज के लिए फलां बटन दबाएं, अब फलां जगह जाकर 'कुछ' लिखें। बॉट्स इस बर्ताव के सिलसिले को उलटने की ताकत रखते हैं। कंप्यूटर अब इंसानों जैसे होने को बेताब हैं। वे इंसानों से बातें करने और उनकी इच्छा को भांपने का माद्दा रखने लगे हैं। कंप्यूटर और इंसान के इस नये रिश्ते की बुनियाद रखने में बॉट्स बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। आइये, जानते हैं बॉट्स के विभिन्न पहलुओं के बारे में आज के ज्ञान मन्त्र के जरिये।
मोबाइल एप्स पुरानी बात
वीं सदी में चूंकि हर दिन एक नयी तकनीक आपके सामने आ रही है इसलिए आपके लिए यह जरूरी हो गया है कि पुरानी तकनीक को छोड़ कर आगे बढ़ें और अपडेटेड रहें। पहले लोगों के लिए वेबसाइट आयी, फिर आये मोबाइल ऐप्स, लेकिन अब इसके भी आगे की चीज आ गयी है जो जल्द ऐप्स की जगह ले सकती है और वो है बॉट्स। जी हां, इसको मनुष्य और मशीन के बीच की एक नयी अहम कड़ी माना जा रहा है। साथ ही, ये इंसानों से बात करने और उनकी इच्छा को भांपने का एक नया माध्यम बन गया है। अभी आपको कंप्यूटर पर काम करने के लिए कंप्यूटर जैसा बनना पड़ता है लेकिन भविष्य में बॉट्स इंसानों की तरह काम करने को तैयार हैं।
क्या हैं ये बॉट्स
बॉट्स तकनीकी दुनिया की एक नयी खोज है जो आपको कंप्यूटर पर अपने तरीके से काम करने की सहूलियत देती है। इन बॉट्स को इंटरनेट के रोबॉट के नाम से जाना जाता है। असल में बॉट्स एक ऐसा नया और खास प्रोग्राम है जिसे मेसेज का जवाब देने के लिए बनाया गया है। ये हर सर्विसेज के लिए अलग बने होते हैं जैसे कि हेल्थ सलाह देने के लिए हेल्थ बॉट्स, वेदर अपडेट के लिए वेदर बॉट्स, शॉपिंग के लिए शॉपिंग बॉट्स, सलाह देने के लिए एडवाइजरी बॉट्स आदि। ये बॉट्स सॉफ्टवेयर और एप्स जैसे ही बनते हैं। इन बॉट्स को अपने या कस्टमर के हिसाब से बनाया जा सकता है। इसके लिए सॉफ्टवेयर डेवलेपर को अच्छी तकनीकी जानकारी होनी चाहिए। लेकिन कुछ कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने ऐसे प्लेटफॉर्म बना दिए हैं जिससे कोई भी बिना मशक्कत के कोडिंग करके इसे बना सकता है। फिलहाल ऐसी कई कंपनियां हैं जो ये प्लेटफॉर्म लोगों को उपलब्ध करा रही हैं जैसे फेसबुक, स्लैक, किक, गपशप आदि। इस सॉफ्टवेयर का कोडिंग का एक सेट लेआउट होता है जिसे प्रोग्रामर जरूरत के हिसाब से कस्टमाइजड कर सकता है।
क्या जरूरत है बॉट्स की
फिलहाल लोग मूल रूप से वेबसाइट और ऐप्स के जरिये ही अपनी जरूरतों तक पहुंचते हैं। जहां लोग मैसेजिंग ऐप्स से हर वक्त एक्टिव रहते हैं वहीं कोई चीज ढूंढने या कोई जानकारी लेने के लिए लोगों को दूसरी साइट या ऐप्प प्ले स्टोर पर जाना पड़ता है। ऐसे में हर कंपनी का मकसद अपने कस्टमर को अच्छी सहूलियत पहुंचाना बन जाता है। और कस्टमर की इसी परेशानी का हल बने हैं ये बॉट्स। मिसाल के तौर पर अगर आपको
कहीं जाना है और आपको कैब बुक करानी है तो आपको पहले उसकी वेबसाइट पर जाना पड़ेगा और तब बुकिंग करानी पड़ेगी। लेकिन बॉट्स के जरिये आपकी परेशानी का हल निकल जाता है। इससे ना तो आपको बार-बार वेबसाइट पर जाना पड़ता है और ना ही ऐप्स को बार-बार क्लिक करना पड़ता है। आप अपनी मैसेजिंग ऐप्प से ही कैब या कोई भी अन्य काम कर सकते हैं। इस सुविधा के लिए आपको कोई भुगतान नहीं करना पड़ेगा बल्कि बॉट्स बनाने वाली या चलाने का पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ही करेगी। एक अन्य उदाहरण के तौर पर, अगर आपको फेसबुक पर चैट करते हुए भूख लगे तो आप पित्जा के बॉटस पर जाकर चैट करके वैरायटी या रेंज से जुड़े सवाल पूछ सकते हैं। संतुष्ट होने के बाद आप जिस नतीजे पर पहुंचेंगे, बॉटस आपके ऑर्डर को पोस्ट करने के लिए एक लिंक चैट पर देगा। इस पर जाकर पेमेंट आदि किया जा सकेगा। इसी तरह ऊबर ऐप पर जाकर टैक्सी बुक करने से बेहतर है अपने मेसेजिंग ऐप के अंदर ही बॉट पर जाकर टैक्सी बुक करें। न ऐप्स पर जाने का झंझट और न बार-बार क्लिक करने की टेंशन। अब तक मेसेजिंग ऐप्स का इस्तेमाल कंस्यूमर बेस को बढ़ाने में किया जा रहा था। अब वक्त है इसके जरिए पैसा कमाने का। हालांकि कमाई का बोझ किसी भी तरह से यूजर्स पर नहीं आयेगा बल्कि बॉट्स को बनाने और चलाने का पेमेंट वह कंपनी करेगी जो इनकी सर्विस उपलब्ध करायेगी।
आ चुके हैं कई बॉट्स
हाल-फिलहाल में कई मैसेजिंग ऐप्स ऐसी हैं जिन्होंने अपने चैटबॉट्स लॉन्च कर दिये हैं उनमें से कुछ नाम हैं फेसबुक, स्लैक, टेलेग्राम, हिपचैट और किक। एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, पीएनबी मेटलाइफ, फ्लिपकार्ट, ओला और मेरू कैब जैसी कंपनियों ने बॉट्स का इस्तेमाल इन-हाउस ऑपरेशंस के लिए शुरू कर दिया है। अभी कुछ दिनों पहले फेसबुक मैसेंजर पर हेल्थ कंसल्टेंसी लाइब्रेट और ऑटो एग्रीगेटर जुगनू ने अपने बॉट्स लॉन्च किये हैं। लाइब्रेट से यूजर्स हेल्थ से संबंधित और जुगनू से अपना ऑटो बुक आसानी से करा सकता है।
अगर बात करें बॉट्स के रेसपॉन्स की तो अभी ये उतने दमदार नहीं हैं। धीमे चलने वाले ये बॉट्स सवाल का जवाब बहुत जेनरिक या काफी सामान्य देते हैं। कई बार ये सवाल समझने में नाकाम रहते हैं या तो सवाल का सही जवाब नहीं देते हैं। कभी-कभी फनी बॉट्स गालियों का इस्तेमाल चैट में करने लगते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद ये धीरे-धीरे ही सही लेकिन आगे बढ़ रहे हैं। हां, इतना जरूर है कि आने वाले समय में ये बॉट्स ऐप्प को पीछे छोड़ सकते हैं और हमारी जिंदगी में एक अहम हिस्सा बन सकते हैं। लेकिन इसकी क्षमता बढ़ाने और इसे बेहतर बनाने में अभी थोड़ा वक्त और लग सकता है।
हॉट हैं बॉट्स
इंटरनेट बॉट्स को वेब रोबॉट भी कहा जाता है। बॉट्स असल में मेसेज का जवाब देने वाला खास प्रोग्राम है। इसे खास सर्विस के लिए डिजाइन किया जाता है।
गुगल जल्द लायेगा अपना बॉट्स
फेसबुक, एसएमएस, ट्विटर, टेलिग्राम, स्लैक, हिपचैट और किक जैसे मेसेजिंग ऐप्स पर कई कंपनियों ने अपने बॉट्स लॉन्च कर दिये हैं। जल्दी ही स्काइप, गूगल हैंगआउट, लाइन, काकाओ और वाइबर भी बॉट्स से लैस होने वाले हैं। सबसे ज्यादा यूजर्स वट्सऐप पर बोट्स का इंतजार कर रहे हैं।
एचआर सहित विभिन्न कार्य को कर रहे हैं बॉट्स
कस्टमर प्रॉडक्ट्स और सर्विस के क्षेत्र में भले ही बॉट्स नये हों, लेकिन कॉरपोरेट लेवल पर इनका चलन पहले ही शुरू हो चुका है। इन्हें एचआर डिपार्टमेंट काम करने वालों का फीडबैक लेने के लिए यूज कर रहा है। दुनिया भर में कई बड़ी कंपनियां बॉट्स के जरिए कर्मचारियों को फीडबैक देने का ऑप्शन देती हैं। इनमें गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और फेसबुक जैसी कंपनियां शामिल हैं। धीरे-धीरे इन्हें दूसरी कंपनियां भी आजमाने का मन बना रही हैं।
समय की मांग है बॉट्स
चैट और मेसेजिंग ऐप्स जैसे वीचैट, वट्सऐप, किक और क्लैक आदि पर लोग सोशल मेसेजिंग सर्विस के जरिए तेजी से कनेक्ट हो रहे हैं। एक सर्वे के मुताबिक वीचैट के तकरीबन 70 करोड़ महीने के एक्टिव यूजर्स हैं तो वट्सऐप पर तकरीबन 90 करोड़ यूजर्स हर महीने एक्टिव रहते हैं। लगातार चैट पर मौजूद किसी भी शख्स को कुछ भी पता करने या खरीदने के लिए बार-बार वेबसाइट या ऐप को खोलना पड़ता है। ऐसे में हर कंपनी के पास चुनौती यूजर्स की परेशानी को हल करने की है। इस चुनौती का हल बॉट्स में छुपा है।
बॉट्स की सीमाएं
* कई बार बॉट्स सही जवाब नहीं देते और न ही सवाल को समझ पाते हैं। ऐसे में झुंझलाहट होती है।
* अंग्रेजी में ही चैट की सुविधा है क्योंकि अभी हिंदुस्तानी भाषाओं के हिसाब से बॉट्स ट्रेंड नहीं हुए हैं।
* खुद-ब-खुद समझ कर और आने वाले सवाल को भांप कर जवाब देने जैसी क्षमता में अभी वक्त लगेगा।
* कई बार मजाकिया बॉट्स गालियां तक चैट में लिखने लगते हैं।
* कौन कितना भरोसेमंद बॉटस है, इसके लिए अभी कोई पैरामीटर नहीं है।
आ रहा है बॉट्स का जमाना
Reviewed by saurabh swikrit
on
8:52 am
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं: