गिनीज बुक में दर्ज हुई 'गैस सब्सिडी'


सरकारी योजनाओं का पैसा अब सीधे खाते में आने लगा है। फिर चाहे वह घरेलू गैस सब्सिडी हो या मनरेगा की मजदूरी। सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी का लाभ इसके असल हकदार तक पहुंचे इस मकसद से एक जनवरी, 2013 को 'डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम' यानी डीबीटी की शुरुआत की गयी थी। डीबीटी के तहत सरकार द्वारा दी जानेवाली सब्सिडी की रकम सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में जमा की जाने लगी है। इसका प्राथमिक मकसद पारदर्शिता बढ़ाते हुए सब्सिडी वितरण में होने वाली धांधलियों को रोकना था। पिछले तीन सालों में इस योजना को मिली सफलता और इसके व्यापक विस्तार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे दुनिया की सबसे बड़ी स्कीम के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह मिली है।

गिनीज बुक तक डीबीटी का सफर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में रेडियो पर प्रसारित 'मन की बात' कार्यक्रम में पिछले दिनों बताया कि सब्सिडी की विभिन्न योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में भेजे जाने की योजना को बड़ी कामयाबी मिली है और इसे दुनिया की सबसे बड़ी स्कीम के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह मिली है । उन्हें इस बात की खुशी है कि इस योजना का सीधा लाभ गरीब व्यक्ति को मिल रहा है । करोड़ों रुपये सरलता से उनके खाते में जा रहे हैं ।
पहले यह तय करना कठिन था कि लाभार्थी का पैसा उसी के पास पहुंच रहा है या नहीं, लेकिन उनकी सरकार ने इसमें थोड़ा बदलाव किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जन-धन खाते और आधार कार्ड की मदद से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम विश्व की सबसे बड़ी योजना बनी है और इसे सफलतापूर्वक देशभर में लागू कर दिया गया है। पहल योजना भी बहुत सफल रही। बीते नवंबर तक करीब 15 करोड़ रसोई गैस के उपभोक्ताओं को पहल योजना का लाभ मिला और उनके खाते में सरकारी पैसा सीधे जाने लगा है।

क्या है डीबीटी
डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम के तहत सरकार द्वारा मुहैया करायी जाने वाली सब्सिडी की रकम सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में जमा की जाती है।

कब लागू हुआ
इस स्कीम को एक जनवरी 2013 को कुछ चुनिंदा जिलों में लागू किया गया। शुरुआत में डीबीटी को गैस सब्सिडी पर लागू किया गया। धीरे-धीरे इसे अन्य स्कीम्स के साथ पूरे देश में लागू किया गया। अब 28 से ज्यादा स्कीम्स को इसके दायरे में लाया जा चुका है।

इन योजनाओं और कार्यक्रमों में है डीबीटी स्कीम
मनरेगा : वर्ष 2005 में शुरू की गयी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना है । इसमें काम करनेवाले बहुत से मजदूरों की मजदूरी के भुगतान में बिचौलिये हावी रहते थे और मजदूर के नाम से जारी होनेवाली पूरी रकम उस तक नहीं पहुंच पाती थी ।
अकसर यह शिकायत मिल रही थी कि मजदूरी बांटने की प्रक्रिया में शामिल लोग इसमें धोखाधड़ी करते हैं । इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान में डीबीटी स्कीम लागू किया। इसके लिए मजदूरों के बैंक खाते खुलवाये गये और उन्हें 'आधार' नंबर से लिंक किया गया । अब मजदूरी का भुगतान सीधे मजदूर के बैंक खाते के जरिये किया जा रहा है। ठेकेदारों द्वारा मजदूरों की संख्या बढ़ा कर फर्जी भुगतान के मामलों पर भी इस प्रक्रिया से रोक लगी है ।

घरेलू गैस सिलेंडर : प्रत्येक एलपीजी ग्राहक को साल में 12 सब्सिडाइज्ड सिलेंडर दिये जाते हैं । केंद्र सरकार ने 'पहल' यानी प्रत्यक्ष हस्तांतरित लाभ योजना के तहत समूचे देश में एलपीजी उपभोक्ताओं के खातों को इससे लिंक कर दिया और इस सब्सिडी की रकम को सीधे बैंक खाते में भेजा जाने लगी है ।

पेंशन स्कीम : केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की जानेवाली विविध पेंशन योजनाओं में अनेक प्रकार की धांधलियों की खबरें आती हैं । अब पेंशनधारी के बैंक खाते में बिना किसी बाधा के पेंशन की रकम सीधे भेजी जाने लगी है। राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली पेंशन योजनाओं में भी डीबीटी लागू किया जायेगा ।

खाद्य सब्सिडी : सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सरकार का मानना है कि डीबीटी से सब्सिडी लीकेज को 30 से 40 फीसदी तक रोका जा सकेगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2015-16 में 1.24 खरब रुपये की खाद्य सब्सिडी दी गयी थी। डीबीटी लागू करने पर सरकार यदि इसमें 40 फीसदी तक सब्सिडी बचाने में कामयाब रही, तो इससे सालाना 50,000 करोड़ तक का मुनाफा हो सकता है।

खाद पर सब्सिडी : छोटे और मंझोले किसानों को सरकार द्वारा खाद सब्सिडी मुहैया करायी जाती है। लेकिन औद्योगिक कार्यों में यूरिया खाद का इस्तेमाल होने से इस सब्सिडी का ज्यादातर फायदा कारोबारियों को मिल जाता है । इसलिए सरकार यूरिया को औद्योगिक इस्तेमाल से बचाने के लिए किसानों को इसे मुहैया कराने में डीबीटी लागू करेगी ।

गरीबी दूर करने में सहायक : दुनिया के कई देशों में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना लागू की गयी है, जिसका मुख्य मकसद गरीबी कम करना रहा है। भारत में साल 2011 के बजट में जनवितरण प्रणाली, केरोसिन और खाद की सब्सिडी सीधे लोगों के खाते में पहुंचाने की योजना की घोषणा की गयी थी। जनवरी 2013 में इसे 20 जिलों में लागू किया गया। मौजूदा समय में यह काफी आगे बढ़ चुकी है और केंद्र सरकार की 42 में से 26 योजनाओं में डीबीटी का प्रयोग किया जा रहा है। सरकार विभिन्न सब्सिडी जैसे स्वास्थ्य, पीडीएस, मनरेगा जैसी योजना पर सालाना लगभग 28 बिलियन डॉलर खर्च करती है और यह जीडीपी का दो फीसदी है। लेकिन भ्रष्टाचार के कारण योजनाओं का लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा था । सब्सिडी के बढ़ते बोझ के कारण राजस्व घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा था । अब लोगों के खाते में सीधे पैसा जाने से न सिर्फ नौकरशाही का दखल कम होने लगा है बल्कि बिचौलियों की भूमिका भी खत्म होती दिख रही है ।

केरोसिन में डीबीटी : केरोसिन सब्सिडी भी इस साल एक अप्रैल से सीधे ग्राहकों के बैंक खातों में जमा होगी । इसके तहत उपभोक्ता गैस सिलिंडर की ही तरह मिट्टी तेल की खरीद बाजार मूल्य पर करेंगे और इसकी सब्सिडी का भुगतान उनके बैंक खातों में किया जायेगा। बीते साल केरोसिन सब्सिडी पर सरकार ने 24,799 करोड़ रुपये खर्च किये, लेकिन माना जा रहा है कि इसका एक बड़ा हिस्सा इसके हकदार लाभार्थियों को नहीं मिल पाता है। दरअसल, अनेक इलाकों में औद्योगिक कार्यों के लिए इसकी खपत होने और डीजल में अवैध रूप से इसकी मिलावट के कारण इसकी कालाबाजारी होती है और सरकार द्वारा दी जानेवाली सब्सिडी का फायदा इन लोगों को भी हो जाता है। डीबीटी से इस पर रोक लगायी जा सकेगी। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान के 26 जिलों में एक अप्रैल से इस योजना की शुरुआत की जा सकती है । 
गिनीज बुक में दर्ज हुई 'गैस सब्सिडी' गिनीज बुक में दर्ज हुई 'गैस सब्सिडी' Reviewed by saurabh swikrit on 5:08 am Rating: 5

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