झारखंड के आदिवासियों से संबंध प्रागाढ़ करना चाहते हैं हान के वंशज
कुडुख जनजातियों पर सबसे पहले लिखने वाले जर्मन मिशनरी फर्दीनंद हान के वंशज उनके कार्यों को देखने के लिए झारखंड आये हैं। इनमें हान के चौथी पीढ़ी के डॉ थियोडोर, मेरी विलफ्रॉम और के शामिल हैं। दो सप्ताह पहले रांची पहुंचे और हान जहां जहां काम किये उन जगहों का दौरा कर रहे हैं। मेरी ने बताया कि उन्हें दस वर्ष पहले फ र्दीनंद हान की डायरी को पढ़ने का मौका मिला। जिसमें झारखंड में किये कामों का उल्लेख था। उसे पढ़कर झारखंड में उनके कार्यों को देखने समझने आये हैं। उस समय में और अब आदिवासियों में कितना परिवर्तन हुआ है उसे भी जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। उन्होंने बताया कि पहले रांची में पहाड़ दिखते थे अब ऊंचे भवनों की अप्तालिकाएं दिखती हैं। उन्होंने कहा कि भाषा ही पहचान है। इसे बचाये रखने की जरूरत है। बोलने की भी आवश्यकता है। घरों में अपनी कहानी बताने की परंपरा यहां भी समाप्त हो गयी है। जिसे पुन: प्रारंभ करना चाहिए। इसी कहानी से बच्चों में जानकारियां आती हैं। इसमें सिर्फ अपने इतिहास को ही नहीं बल्कि जीवन दर्शन और जीवन को बताना चाहिए। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को अपनी बातों को अंग्रेजी भी लिखनी चाहिए। इसी से उनकी पहचान पूरे विश्व में जायेगी। डॉ थियोडोर ने बताया कि हान मिशनरी तो थे ही लेकिन उन्हें उरांव समुदाय से बेहद लगाव था। उनसे घुल मिलकर उरांवों की जीवन को लिखने का काम किया। हम जर्मन और इंडिया वाले यानी आदिवासी भाई बहन हैं, क्योंकि हम एक दूसरे को समझ सकते हैं। जर्मन मिशनरियों के आदिवासियों पर किये कार्यों को साझा करने की इच्छा जतायी है। इन्होंने साथ भाषा साहित्य को विकास करने में योगदान देने की बात कही है। हान के वंशज उनके कार्यों से काफी खुश नजर आये और संतुष्टि जतायी। अब इस रिश्ते को वे आगे बढ़ाना चाहते हैं।
कौन हैं फर्दीनंद हान
एक जर्मन मिशनरी थे, जो झारखंड में काफी दिनों तक रहे। उन्होंने सबसे पहले कुड़ख भाषा में व्याकरण लिखा। उनकी पुस्तकों में कुड़ुख इंगलिश डिक्शनरी, कुड़ुख फोक लोर, कुड़ुख डिक्शनरी 1904 शामिल है। लील खोरआ खेखेल पुस्तक में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। वे लोहरदगा जिले में रहे। लोहरदगा नगरपालिका के पहले चेयरमैन थे। वे 1888 में और 24 सितंबर 1899 से तीन नवंबर 1900 तक लोहरदगा नगरनिगम के चेयरमैन रहे। दस वर्षों तक लोहरदगा में और दस वर्षों तक पूर्णिया में रहे। जहां कुष्ठ रोगियों के लिए काम किया। उरांव जनजातियों के लिए उन्होंने जो काम किया वह अविस्मरणीय है। उन्होंने ही सबसे पहले पुस्तक के रूप में उरांव जनजाति को सामने लाया।
गुरुवार को पहुंचे जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग
हान के वंशज गुरुवार को जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग पहुंचे। वहां विभाग के शिक्षक और विद्यार्थियों को झारखंडी रीति-रिवाज के अनुसार स्वागत किया। विभागाध्यक्ष डॉ केसी टुडू ने कहा कि झारखंड की भाषा साहित्य को सबसे पहले लिखित रूप दिया । इनमें हान, नोतररोत आदि शामिल हैं। डॉ हरि उरांव ने फर्दीनंद हान के बारे बताया। फादर अगुस्टीन ने कड़ी का काम किया। हिंदी और अंग्रेजी में बताकर हान के बारे में लोगों को अवगत कराया। इस अवसर पर डॉ निर्मल मिंज,डॉ त्रिवेणीनाथ साहू, डॉ उमेश नंद तिवारी, डॉ नारायण भगत, महेश भगत,डॉ वीरेंद्र सोय,शोधार्थी, विद्यार्थी उपस्थित थे।
कौन हैं फर्दीनंद हान
एक जर्मन मिशनरी थे, जो झारखंड में काफी दिनों तक रहे। उन्होंने सबसे पहले कुड़ख भाषा में व्याकरण लिखा। उनकी पुस्तकों में कुड़ुख इंगलिश डिक्शनरी, कुड़ुख फोक लोर, कुड़ुख डिक्शनरी 1904 शामिल है। लील खोरआ खेखेल पुस्तक में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। वे लोहरदगा जिले में रहे। लोहरदगा नगरपालिका के पहले चेयरमैन थे। वे 1888 में और 24 सितंबर 1899 से तीन नवंबर 1900 तक लोहरदगा नगरनिगम के चेयरमैन रहे। दस वर्षों तक लोहरदगा में और दस वर्षों तक पूर्णिया में रहे। जहां कुष्ठ रोगियों के लिए काम किया। उरांव जनजातियों के लिए उन्होंने जो काम किया वह अविस्मरणीय है। उन्होंने ही सबसे पहले पुस्तक के रूप में उरांव जनजाति को सामने लाया।
गुरुवार को पहुंचे जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग
हान के वंशज गुरुवार को जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग पहुंचे। वहां विभाग के शिक्षक और विद्यार्थियों को झारखंडी रीति-रिवाज के अनुसार स्वागत किया। विभागाध्यक्ष डॉ केसी टुडू ने कहा कि झारखंड की भाषा साहित्य को सबसे पहले लिखित रूप दिया । इनमें हान, नोतररोत आदि शामिल हैं। डॉ हरि उरांव ने फर्दीनंद हान के बारे बताया। फादर अगुस्टीन ने कड़ी का काम किया। हिंदी और अंग्रेजी में बताकर हान के बारे में लोगों को अवगत कराया। इस अवसर पर डॉ निर्मल मिंज,डॉ त्रिवेणीनाथ साहू, डॉ उमेश नंद तिवारी, डॉ नारायण भगत, महेश भगत,डॉ वीरेंद्र सोय,शोधार्थी, विद्यार्थी उपस्थित थे।
झारखंड के आदिवासियों से संबंध प्रागाढ़ करना चाहते हैं हान के वंशज
Reviewed by saurabh swikrit
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7:02 am
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