समय की मांग है अनिवार्य मतदान







सौरभ स्वीकृत  
देश में काफी समय से अनिवार्य मतदान की मांग उठती रही है, लेकिन देश के राजनीतिक दल और बुद्धिजीवी इस व्यवस्था के बारे में एक मत नहीं हैं। विशेषज्ञों का एक धड़ा जहां मतदान को मौलिक जिम्मेदारी में जोड़ने और उल्लंघन करने पर जुर्माने की बात करता है, तो दूसरा इसे लोकतंत्र के लिए व्यवहारिक नहीं मानते।

अनिवार्य मतदान का अर्थ है कि कानून के अनुसार किसी चुनाव में मतदाता को अपना मत देना या मतदान केन्द्र पर उपस्थित होना अनिवार्य है। यदि कोई वैध मतदाता, मतदान केन्द्र पहुंचकर अपना मत नही देता है तो उसे पहले से घोषित कुछ दंड का भागी बनाया जा सकता है। पहले लोकसभा चुनाव से लेकर 15वी लोकसभा के मतदान प्रतिशत पर नजर डाली जाये तो पता चलता है कि चुनाव प्रतिशत सुधरने के बजाय गिरा है।

वर्तमान में प्रचलित फर्स्ट पास्ट द पोस्ट निर्वाचन प्रणाली की बजाय उम्मीदवार के लिए कुल पड़े मतों का 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त होना आवश्यक हो। अधिकांश सांसद/विधायक कुल मतदाताओं का केवल 25 प्रतिशत मत प्राप्त करके भी निर्वाचित घोषित हो जाते हैं। प्रस्तावित व्यवस्था से मतदान का प्रतिशत स्वत: बढ़ जायेगा, क्योंकि निर्वाचित घोषित होने के लिए राजनीतिक दलों तथा उम्मीदवारों को और अधिक मत प्राप्त करने का प्रयास करना होगा। इससे मतदाताओं की संख्या भी बढ़ेगी। मतदान को अनिवार्य-कर्तव्य बनाने के पक्ष में दिए जाने वाला तर्क स्पष्ट है। आज जो प्रणाली लागू है उसके अन्तर्गत कुल पड़े मतों का बहुमत पाने वाला प्रत्याशी विजयी घोषित होता है। इसे अंग्रेजी में फर्स्ट पास्ट द पोस्ट व्यवस्था कहा जाता है। ज्यादातर यह होता है कि कुल पंजीकृत मतदाताओं का बहुसंख्यक हिस्सा मतदान में भाग नहीं लेता। हालांकि हाल के चुनावों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ मतदान का प्रतिशत लगभग हर जगह बढ़ता गया है और कई जगह 60 से 70 प्रतिशत तक मतदान होने लगा है। ऐसी स्थिति में कुल मतदाताओं के आधे से कम के मतदान में बहुमत प्राप्त करने वाला विजयी उम्मीदवार अक्सर कुल मतों के चौथाई प्रतिशत से कम में भी जीतता रहा है।

लोकसभा के इतिहास में 1984 में 63.56 प्रतिशत मतदान हुआ जो अब तक का एक रिकार्ड है। गौरतलब है कि यह चुनाव इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ जिसमें पुरूष मतदाताओं की संख्या 68.18 प्रतिशत और महिलाओं की संख्या 58.60 प्रतिशत रही। यहां गौर करने की बात यह भी है कि बीते 15 वीं लोकसभा चुनाव में इतनी बडी तादाद में पुरुष और महिला मतदाता वोट देने के लिए घर से नही निकले। चुनाव आयोग तथा विभिन्न सरकारों द्वारा जागरूकता के लिए प्रचार अभियान चलाये जाने के बावजूद स्थिति जस की तस है। इसलिए एक विकल्प जो ध्यान में आता है वह है मतदान को अनिवार्य करना। दुनिया में 31 ऐसे देश हैं जहां के कानून किसी-न-किसी रूप में अनिवार्य मतदान पद्धति का प्रावधान करते हैं, परंतु प्रेक्षकों के मुताबिक इन कानूनों का विवरण इस तरह का है कि इनमें से केवल एक दर्जन ही बगैर किसी न्यायोचित कारण के अनिवार्य मतदान न करने की स्थिति में नागरिकों पर दंड देने का प्रावधान रखते हैं।

बहुमत का प्रतिनिधित्व नहीं
भारत इस तथ्य पर गर्व कर सकता है कि जितने मतदाता भारत में हैं, दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं और लगभग हर साल भारत में कोई न कोई ऐसा चुनाव अवश्य होता है, जिसमें करोड़ों लोग वोट डालते हैं। लेकिन अगर हम थोड़ा गहरे उतरें तो हमें निराशा भी हो सकती है। आजादी के बाद से हमारे यहां एक भी सरकार ऐसी नहीं बनी, जिसे कभी 50 प्रतिशत वोट मिले हों। आज भारत में कुल मतदाताओं की संख्या 80 करोड़ के पार जा पहुंची है। दूसरे शब्दों में 125 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में सिर्फ 10-12 करोड़ लोगों के समर्थनवाली सरकार क्या वास्तव में लोकतांत्रिक सरकार है। यह एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।

मतदान केंद्र पर हाजिरी जरूरी
देश के प्रत्येक वयस्क को बाध्य किया जाना चाहिए कि वह देशहित में मतदान करे। बाध्यता का अर्थ यह नहीं है कि वह इस या उस उम्मीदवार को वोट दे ही। अगर वह सारे उम्मीदवारों को अयोग्य समझता है तो किसी को वोट न दे। परिवर्जन (एब्सटेन) करे, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र संघ में सदस्य-राष्ट्र करते हैं। दूसरे शब्दों में यह वोट देने की बाध्यता नहीं है बल्कि मतदान केंद्र पर जाकर अपनी हाजिरी लगाने की बाध्यता है। यह बताने की बाध्यता है कि इस भारत के मालिक आप हैं और आप जागे हुए हैं।

बदलेगी तस्वीर
यदि भारत में मतदान अनिवार्य हो जाये तो चुनावी भ्रष्टाचार बहुत घट जायेगा। वोटरों को मतदान-केंद्र तक लाने में अरबों रुपया खर्च होता है, शराब की नदियां बहती हैं, जात और मजहब की वोट ली जाती है तथा अनेक अवैध हथकंडे अपनाये जाते हैं। इन सबसे मुक्ति मिलेगी। लोगों में जागरुकता बढ़ेगी। वोट-बैंक की राजनीति भी थोड़ी पतली पड़ेगी। जो लोग अपने मतदान-केंद्र से काफी दूर होंगे, वे डाक या इंटरनेट या मोबाइल फोन से वोट कर सकते हैं। जो लोग बीमारी, दुर्घटना या किसी अन्य अपरिहार्य कारण से वोट नहीं डाल पाएंगे, उन्हें कानूनी सुविधा अवश्य मिलेगी। जिस दिन भारत के 90 प्रतिशत से अधिक नागरिक वोट डालने लगेंगे, जागरूकता इतनी बढ़ जायेगी कि लोग जनमत-संग्रह, जन-प्रतिनिधियों की वापसी और सुनिश्चित अवधि की विधायिका और कार्यपालिका की मांग भी मनवा कर रहेंगे। भारत की संसद और विधानसभाओं में केवल ऐसे सदस्य होंगे, जिन्हें अपने क्षेत्र  के 50 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं ने चुना है। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए यह जरूरी है कि तंत्र के साथ-साथ लोक भी मजबूत हो।

क्या हो सकती है सजा
कोई वोट देने न जाये तो उसे अपराधी घोषित नहीं किया जाता न ही उसे जेल में डाला जाता, लेकिन उसके साथ वैसा किया जा सकता है जैसा कि बेल्जियम, आस्ट्रेलिया, ग्रीस, बोलिनिया और इटली जैसे देशों में किया जाता है याने मामूली जुर्माना किया जाएगा या पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनाया जायेगा, सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, बैंक खाता नहीं खोलने देंगे या चार-पांच बार लगातार मतदान न करने पर मताधिकार ही छिन जायेगा। इस तरह के दबावों का ही परिणाम है कि अनेक देशों में 98 प्रतिशत मतदाता वोट डालने जाते हैं। इटली में तो अनिवार्यता हटा लेने पर भी 90 प्रतिशत से अधिक मतदान होता है, क्योंकि मतदान करना अब लोगों की आदत बन गया है मतदान न करना वास्तव में अपने मौलिक अधिकार की उपेक्षा करना है।

मतदाता का डर तो खत्म हो...
मतदान को अनिवार्य बनाने के पहले बहुत सारे ऐसे चुनावी सुधार हैं, जिनकों लागू कर हम अपने जनतंत्र को अधिक सशक्त, समर्थ और सार्थक बना सकते हैं। चुनावों में कालेधन का असर हो या बाहुबल का कुप्रभाव, इनकी रोकथाम के लिए जो कानून फिलहाल दंड संहिता में हैं उनका सख्ती से पालन ही जनतंत्र की जड़ों को मजबूत बना सकता है। यदि औसत निरीह मतदाता मतदान के लिए घर से नहीं निकलता तो उसके मन में चुनाव के पहले और बाद हिंसा की संभावना या पास-पड़ोस में बैर भाव बढ़ने की आशंका रहती है। यदि एक बार यह भय मन से निकल जाये तो मतदाता सहर्ष-सह उत्साह मतदान के लिए तत्पर होंगे।

इससे क्या होगा?
इससे 18 वर्ष से अधिक उम्र के हर नागरिक के लिए मतदान प्रक्रिया में भाग लेना अनिवार्य होगा।

यदि कोई भी उम्मीदवार या कोई भी दल पसंद ना हो तो?
इसके लिए मतदाता को कोई योग्य नहीं विकल्प मिलेगा। चुनाव आयोग ने पहली बार मतदाता के सामने यह विकल्प रखा है कि वह उपलब्ध उम्मीदवारों में यदि किसी को भी चुनना नहीं चाहता है, तो वह ह्यकोई भी नहींह्य वाले विकल्प का बटन दबा सकता है।


यदि कोई नागरिक मतदान न करे तो?

तो उसे एक माह के भीतर कारण बताओ नोटिस का जवाब देना होगा और मतदान ना करने के लिए कारणों के लिए आवश्यक सबूत दिखाने होंगे। ऐसी सूरत में मतदाता को मिलने वाली सरकारी राहतों पर रोक लग सकती है। इस विषय में अभी फैसला होना बाकी है।

मतदान न कर सकने लायक योग्य स्थिति

यदि कोई मतदाता बीमार हो, राज्य अथवा देश से बाहर हो, मतदान केन्द्र आ सकने में असमर्थ हो या फिर अन्य कोई वैध वजह हो।

सबसे पहले गुजरात में लागु
भारत में अनिवार्य मतदान कानून लागु करने वाल पहला राज्य है गुजरात। यहां सभी को मतदान करने के लिए अनिवार्य कर दिया गया है।

पक्ष- विपक्ष में राय
पक्ष
 इससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि चुनी हुयी सरकार लोगों के विशाल वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। इससे जनादेश स्पष्ट होगा।
  
 इससे पता चलेगा कि कितने प्रतिशत लोग किसी भी दल को सही नहीं मानते।
 
 इससे अयोग्य उम्मीदवारों के लिए जीत मुश्किल होगी।

विपक्ष

वोट देना यह एक नागरिक अधिकार है, इसे अनिवार्यता के दायरे में नहीं लाया जा सकता। वोट देना या ना देना लोगों की मरजी पर निर्भर है।
   
वोट न देने वाले लोगों की पहचान कर उन्हें दंडित करने की प्रक्रिया भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में मुश्किल होगी।


इन देशों में है अनिवार्य मतदान
जिन सात देशों में मतदाताओं हेतु नोटा का प्रावधान है, उनमें से शुरू के पांच देश- फ्रांस, बेल्जियम, ब्राजील, ग्रीस और चिली- में अनिवार्य मतदान का भी प्रावधान है। शेष 26 देश, जिनमें किसी-न-किसी प्रकार के अनिवार्य मतदान का प्रावधान है, वे हैं- ऑस्ट्रिया, अर्जेन्टीना, आस्ट्रेलिया, बोलिविया, कोस्टा, रीका, साइप्रस, डोमिनियन रिपब्लिक, इक्वाडोर, मिस्र, फिजी, गबॉन, ग्वाटेमाला, होंडारस, इटली, लिंचिस्टाइन, लक्सम्बर्ग, मैक्सिको, नेरु, प्राग, पेरू, फिलीपीन, सिंगापुर, स्विटजरलैंड  थाईलैंड, दक्षिण अफ्रीका, इजिप्त, कांगो, स्वित्जरलैंड,  तुर्की और उरुग्वे आदि।

















समय की मांग है अनिवार्य मतदान समय की मांग है अनिवार्य मतदान Reviewed by saurabh swikrit on 11:27 am Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

Blogger द्वारा संचालित.