वतन पर शहीद झारखंड के लाल ठाकुर विश्वनाथ के शहादत को नमन



सौरभ स्वीकृत

व्रितानी शासन की चूलें जमने के पहले झारखंड के पठार पर इस  कदर हिल जायेगी इसकी कल्पना शयद किसी ने नहीं कि थी। अंग्रेज तेजी से देश पर कब्जा करना चाह रहे थे लेकिन झारखंड के वीर सपूतो ने अपने सिमित साधनों मे अंग्रेजों का जबरदस्त विरोध किया। अपनी जान की परवाह किये बगैर भारत माता की जमीन पर गुलामी का पताका न फहर पाये इसके लिये जान की आहूति दे दी। इन्हीं विरों में से एक थे शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव। सैकड़ो गुमनाम शहीदों का गवाह है झारखंड की सांस्कृतिक विरासत। प्रतीकों से जिन्हें हम सम्मानित करके अपने आप में गौरवान्वित महसूस करते हैं उनमें से एक है राजधानी रांची का शहीद चौक। वैसे तो भीड़-भाड़ के बीच से इस चौराहे को पार करना एक सहज कवायत है लेकिन जब इस चौक से सटे जिला स्कूल परिसर की ऐतिहासिक पृष्टभूमि का पता किसी को भी चलता है तो सम्मान से उसका सर जरूर झुक जाता है। रांची के शहीद चौक पर हाथ में क्रांति की मशाल थामे दो मजबूत हाथों की आकृति लोगों को आर्किषत करती है। इसी शहीद चौक के निकट एक शासकीय विद्यालय है जिसका नाम झारखंड सरकार ने ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के नाम पर रखा है। विद्यालय में स्थित एक पेड पर अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को 16 अप्रैल, 1858 को फांसी दी गयी थी। आज वह पेड तो नहीं है पर उस स्थान पर भव्य शहीद स्तम्भ हमें अमर शहीद विश्वनाथ शाहदेव के बलिदान की याद दिलाता है। 1857 के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव झारखंड की एक छोटी सी रियासात बड़कागढ़ के राजा थे। स्वाभिमान और देशभक्ति उनकी नसों में बहती थी। यही कारण था कि वह 1857 की क्रांति में बेझिझक कूद गये। वर्ष 1857 की क्रांति में मंगल पांडे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बाबू कुंवर सिंह, नाना साहब पेशवा, तात्याटोपे, बहादुर शाह जफर जैसे अनगिनत क्रांतिकारियों ने मातृभूमि की रक्षा के लिये ब्रिटिश शासन से टक्कर ली थी, उनमें से एक ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव भी एक थे।

झारखंड के रांची, हजारीबाग, चतरा, चाईबासा, गुमला, दुमका में क्रांति की लौ सुलगने लगी थी। लोगों ने कंपनी शासन को भगाने का बीडा उठा लिया था। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव सिर्फ बड़कागढ़ को ही नहीं, समूचे झारखंड को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने की घोषणा कर चूके थे। उनके सिपाही जगह-जगह अंग्रेजों का सामना कर रहे थे। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के दीवान पांडेय गणपत राय थे। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने झारखंड की आजादी की कमान दीवान पांडेय गणपत राय को सौंपी। यह लडाई कई मोर्चो पर लड़ी गई। क्रांतिकारियों के एक जत्थे ने अंग्रेजों को पराजित कर अपनी वीरता की पताका को चतरा तक पहुंचाया था। इस जत्थे के एक दल का नेतृत्व ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और दूसरे जत्थे का नेतृत्व पांडेय गणपत राय कर रहे थे। इनका आक्रमण इतना तेज था कि अंग्रेजों को शहर छोड़कर भागना पड़ा। रांची की कचहरी, थाना, जेल जैसे सभी जगहों पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो गया था। रांची शहर को आजाद घोषित कर दिया गया था, जो एक माह तक आजाद रहा, लेकिन देश के गद्दारों की वजह से यह ज्यादा समय तक आजाद न रह सका।

पिठोरिया के परगनाधीश जगतपाल सिंह ने अंग्रेजों की काफी मदद की। इन वीर क्रांतिकारियों के आगे अंग्रेजों के दांत खट्टे हो गये थे। पांडेय गणपतराय के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने चाईबासा में अंग्रेजों के खजाने को लूटा। अंग्रेज घबरा गये। पलामू में नीलाम्बर-पीताम्बर, डकैत उमराव और दीवान शेख भिखारी ने रांची के आस-पास बगावत का झंडा फहराकर तबाही मचा रखी थी। जान की बाजी लगाने वाले वीर क्रांतिकारियों में जोश था। वह जगह-जगह संघर्ष कर रहे थे। हजारीबाग, रांची, चतरा, लोहरदगा सब जगह क्रांतिकारी, अंग्रेजों की फौज का मुकाबला कर रहे थे, जिनका कुशल नेतृत्व ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव कर रहे थे, उनकी देखरेख में पूरे झारखंड की अनेक रियासतों में विद्रोह की ज्वाला जल उठी थी। क्रांतिकारियों का एक दल नये जोश के साथ अंग्रेजी फौज से सामना करने के लिए खडा हो जाता था। इसी वजह से झारखंड की आजादी की लडाई निरंतर चलती रही।

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को पकडने के लिए अंग्रेज सरकार ने ईनाम घोषित किया। देशद्रोही दगाबाजों ने अंग्रेजों का साथ देकर मेजर कोटर और कैप्टन ऑक्स की सेना को मजबूत किया। इन लोगों के आगे भी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के कदम नहीं रुके। वह अंग्रेजों के घेरों को तोडकर अपनी वीरता दिखाते हुये निकल जाते थे। बाद में जयचंद और मीरजाफर जैसे लोगों ने झारखंड के क्रांतिकारियों को अंग्रेजों की जेलों में डलवा दिया। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और पांडेय गणपत राय को भी अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर फतह हासिल कर ली। शेख भिखारी और डकैत उमराव सिंह नीलाम्बर और पीताम्बर को गिरफ्तार कर लिया गया था। 1858 में जब ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव चतरा तालाब के निकट युद्ध कर रहे थे, तभी धोखे से उन्हें घेर कर पकड़ लिया गया। उन्हें पैदल चतरा से रांची लाकर अपर बाजार जेल में बंद कर दिया गया था। 16 अप्रैल 1858 को ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को रांची जिला स्कूल के गेट के निकट एक कदंब पेड़ की डाली से लटका कर फांसी दे दी गयी थी। अप्रैल 1858 को पांडेय गणपत राय को भी उसी जगह फांसी दे दी गयी।

जगत्राथपुर मंदिर से फूटी थी आंदोलन की चिंगारी
झारखंड में स्वाधीनता संग्राम का शुभारंभ पहली बार अगस्त 1857 में बड़कागढ़ रियासत के शासक ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के नेतृत्व में ऐतिहासिक जगत्राथपुर मंदिर से हुआ था। इसी मंदिर परिसर में ही स्वाधीनता सेनानी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव व पांडेय गणपत राय अपने सैनिकों के साथ इकट्ठा हुये थे। मंदिर में पूजा कर स्वाधीनता के सिपाहियों ने डोरंडा छावनी की ओर युद्ध के लिए कूच किया था। छावनी पहुंचने के पूर्व अंगरेज पदाधिकारी व सैनिक वहां से भाग खडे़ हुये थे। स्वाधीनता के सिपाही आगे बढ़ते गये और प्रशासनिक कार्यालयों व अंगरेज पदाधिकारियों के घरों पर धावा बोल दिया और उन्हें आग के हवाले कर दिया। उस समय जेल अपर बाजार में हुआ करती थी। स्वाधीनता सेनानियों ने अपर बाजार जेल पर आक्रमण कर वहां से तीन सौ वंदियों को छुडाया था।

कर्नल डालटन अवास छोड़ भागे थे
कैदियों को छुड़ाने से पहले सेनानियों ने छोटानागपुर के कमिश्नर कर्नल डालटन के आवास पर भी धावा बोला था। सेनानी के हमले से पहले ही कर्नल अपना आवास छोड़ कर पिठोरिया की ओर भाग गये थे। आज का मेन रोड उस समय चाइबासा रोड कहलाता था। इस चाइबासा रोड पर अंग्रेजो के कई कार्यालय और आवास थे। उसे भी आग के हवाले कर दिया गया था। कोर्ट कार्यालय को जलाते हुए सेनानी न्यायायुक्त मिस्टर डेविस के आवास की तरफ गये। मिस्टर डेविस का आवास आज के राजभवन परिसर में हुआ करता था। उसे भी जला दिया गया था। जगत्राथपुर मंदिर से निकले स्वाधीनता सेनानी पूरे रांची क्षेत्र को आजाद कराते हुए छोटानागपुर के अन्य क्षेत्रों को भी अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करा दिया था।

लड़ाई शुरू करने से पहले ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव  द्वारा अपने गढ़ की जनता को संबोधन:-
'आप जानते हैं कि  मैं ठाकुर अनिनाथ  शाहदेव के वंश की सातवीं पीढ़ी का  उत्तराधिकारी हूं। जब हमारे पूज्य पूर्वज अनिनाथ शाहदेव ने जगन्नाथपुर  मंदिर का निर्माण कराया था, तो कहा था ,'श्री जगन्नाथ हमारे प्रजा के सम्मान की रक्षा करेंगे, लेकिन, इसके लिए हमें अपनी शक्ति का भी लगातार  संवर्धन करते रहना होगा...' आज हमारे ऊपर गुलामी का संकट है। सात समुद्र पार से आये अंग्रेज हमें गुलाम बनाने की प्रक्रिया में हैं। वे हमारे राज पर अपना कानून लादना चाहते हैं। हम पर मनमाना टैक्स लगाना चाहते हैं। हमें हमारे धर्म से भी अलग करना चाहते हैं। मैं आज यह घोषणा कर रहा हूं कि मैं आज से अंग्रेजों का कानून नहीं मानूंगा। उन्हें  टैक्स देने का प्रश्न ही नहीं उठता। हम सदा स्वतंत्र थे और स्वतंत्र रहेंगे।'
   
सभी को दिलायी स्वतंत्रता हासिल करने की शपथ:-
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के सभी दरबारियों ने शपथ ली कि वे अपनी स्वतन्त्रता बरकरार रखने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देंगें। इस घटना की सूचना जब अंग्रेज प्रशासकों को मिली तो वे आक्रोश से भर उठे। अंग्रेजों ने डोरंडा छावनी से सेना की एक टुकड़ी सतरंजी पर हमला करने के लिए भेजा। हटिया के समीप ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और उनके सैनिकों ने अंग्रेजी सैनिकों को घेर लिया। अंग्रेजी सेना ने इस तरह की घेराबंदीके बारे में कभी सोचा नहीं था। उन पर तीरों की वर्षा  होने लगी। पत्थर बरसाए जाने लगे। पहाड़ी इलाके में अंग्रेजी सैनिक अपने आधुनिक हथियारों का प्रयोग नहीं कर पा रहे थे। अधिकांश अग्रेजी सैनिक मारे गये। बचे हुए सैनिक किसी तरह अपनी जान बचा कर भागे। इस प्रकार स्वतंत्रता के सेनानियों ने पहली जीत दर्ज की। इसके बाद ठाकुर ने अपने दरबार में कहा था 'अंग्रेजी सैनिकों को हमने अवश्य मात दी है लेकिन, अब हमें और सचेत रहने की जरूरत है। वे फिर हमला करेंगे और अपनी पूरी ताकत से हमला करेंगे। अंग्रेज के पिट्ठू जमींदारों, उनके मुखबिरों और यहां तक कि पादरियों के प्रति भी हमें सजग रहना होगा। घर का दुश्मन अज्ञात दुश्मनों  से ज्यादा खतरनाक होता है।


वतन पर शहीद झारखंड के लाल ठाकुर विश्वनाथ के शहादत को नमन वतन पर शहीद झारखंड के लाल ठाकुर विश्वनाथ के शहादत को नमन Reviewed by saurabh swikrit on 12:12 pm Rating: 5

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