टीबी खतरनाक है लाइलाज नहीं


भारत टीबी के मरीज सबसे ज्यादा  
भारत दुनिया में ऐसा देश बन गया है जहां टीबी के सबसे ज्यादा मरीज है। यही नहीं, मामले दर्ज नहीं होने वाले देश में विश्व का हर चौथा मामला भारत का होता है। साल 2013 के दौरान दुनिया के दस देशों में करीब 24 लाख तपेदिक यानी कि टीबी के मामले दर्ज ही नहीं हुए। 2013 में दुनिया भर में 90 लाख टीबी के मामले थे जिनमें से सिर्फ 57 लाख ही पहचाने गये और नेशनल टीबी प्रोग्राम (एनटीपी) में दर्ज किए गये। 2013 में टीबी के कुल मामले 90 लाख हो गये थे जबकि 2012 में यह आंकड़ा 86 लाख का था। पिछले साल करीब 15 लाख लोगों की टीबी से मौत हो गयी, इनमें से तीन लाख साठ हजार लोग ऐसे थे जो एचआइबी पॉजिटिव भी थे। 2013 के रिर्पोट के अनुसार टीबी के सबसे ज्यादा मामले दक्षिण पूर्वी एशिया और पश्चिमी प्रशांत देशों में दर्ज हुए, इनमें भारत में 24 फीसदी और चीन में 11 फीसदी मामले दर्ज किए गये थे। इस साल करीब 4 लाख 80 हजार मामले दर्ज किए गये हैं।

फेफड़े में अधीक होती है यह बीमारी
टीबी शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है, लेकिन आम तौर पर फेफड़ों में ही सबसे अधिक होती है। सरवाइकल टीबी - ये गर्दन में होती है। हड्डियों की टीबी - ये रीढ़ की हड्डी में होती है। मेनिनजाइटिस टीबी - ये दिमाग में होती है। इंटेस्टाइन टीबी - ये आंतों में होती है। जेनेटिक टीबी - ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के व्यक्ति को होती है। फेफड़ों की बलगम धनात्मक टीबी समाज के लिए भी घातक होती है। इससे ग्रसित रोगी के खांसने, छींकने और बोलने के साथ ही क्षय कीटाणु दूसरे लोगों में फैलते हैं। एक बलगम धनात्मक क्षय रोगी वर्ष भर में 10-15 अन्य लोगों को टीबी का शिकार बना सकता है।

हर तीन मिनट में दो मौत
बचाव के लिए बीसीजी का टीका है। इस पर नियंत्रण पाने के लिए देश भर में डॉट्स नामक एक विशेष कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। इस दिशा में सरकार पूरी तरह गंभीरता बरत रही है। निजी मेडिकल स्टोरों पर भी टीबी की दवा मुफ्त उपलब्ध करा रही है। विडंबना यह है कि हमारा समाज टीबी रोगियों को बड़ी हीन दृष्टि से देखता है। कोई भी टीबी रोगी यह नहीं चाहता कि किसी को उसकी बीमारी का पता चले, इसलिए पहले वह अपनी बीमारी छिपाने का हरसंभव प्रयास करता है और इसी वजह से समय पर इलाज नहीं कराता। जब इलाज कराने जाता है तो पता चलता है कि बहुत देर हो चुका है और वह मौत के मुंह में खड़ा है। देश में टीबी से प्रति तीन मिनट पर दो मौतें होने का यही सबसे बड़ा कारण है।

यदि आप स्वास्थ्य सेवा में हैं तो...
अगर आप स्वास्थ्य सेवा कर्मचारी हैं तो आप इसके खतरे की जद में रहते हैं। क्योंकि संक्रमित मरीज से इसका बैक्टीरिया आसानी से आपके अंदर प्रवेश कर सकता है। सक्रिय टीबी वाले लोगों के संपर्क में आने से किसी को भी टीबी का संक्रमण हो सकता है। अगर आपकी इम्यूनिटी कमजोर नही है तो आप सक्रिय टीबी का शिकार नही हो सकते। विश्व स्वास्थ्य संगठन की दक्षिण-पूर्व एशिया रिर्पोट में भी भारत को नंबर वन पर रखा है। इसमें बताया गया है कि भारत में महिलायें टीबी का सबसे ज्यादा शिकार हो रही हैं।

टीबी के आम लक्षण-
तीन सप्ताह से अधिक खांसी
बुखार जो खासतौर पर शाम को बढ़ता है।
छाती में दर्द
वजन का घटना
भूख में कमी
बलगम के साथ खून आना
फेफड़ों का इंफेक्शन बहुत ज्यादा होना
सांस लेने में दिक्कत

जांच के तरीके
छाती का एक्स-रे, बलगम या बलगम के साथ आये खून की जांच और स्किन टेस्ट।
छाती के एक्स-रे से टयूबरक्युलोसिस का पता लगाया जा सकता है। क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया फेफड़ों पर ज्यादातर अपना हमला करते है। इससे फेफड़ों में कुछ स्पोट बंन जाते हैं।

कैसे करें इस बीमारी से बचाव 
बच्चों को जन्म से एक माह के अंदर टीबी का टीका लगवायें।
खांसते -छींकते समय मुंह पर रुमाल रखें।
रोगी जगह-जगह नहीं थूकें।
पूरा इलाज करायें।
अल्कोहल और धूम्रपान से बचें।

बच्चों में टीबी
बच्चों में टीबी कई तरह से हो सकती है जैसे प्रायमरी कॉम्प्लेक्स, बाल टीबी, प्रोग्रेसिव प्रायमरी टीबी, मिलियरी टीबी ,दिमाग की टीबी, हड्डी की टीबी आदि । साधारण तौर पर बच्चों में प्रायमरी कॉम्प्लेक्स होता है। इस बीमारी से बार-बार बुखार आना, लंबे समय तक खांसी होना, वजन न बढ़ना या वजन घटना, सुस्त रहना, गर्दन में गठानें होना, प्रोग्रेसिव प्रायमरी टीबी में बच्चा ज्यादा बीमार रहता है। तेज बुखार आना, भूख न लगना, खांसी में कफ आना और छाती में निमोनिया के लक्षणों का पाया जाना। बड़े बच्चों में कभी-कभी कफ में खून भी आता है। जबकि मिलियरी टीबी एक गंभीर किस्म की टीबी है। यह फेफड़ों में सारी जगह फैल जाती है। इसमें बच्चा गंभीर रूप से बीमार रहता है, खाना-पीना छोड़ देता है, सुस्त रहता है, सांस लेने में तकलीफ होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से बेहोशी छाने लगती है। दिमाग की टीबी मेनिनजाइट्सि के रूप में या गठान के रूप में हो सकती है। इसके अलावा सिरदर्द होना, उल्टियां होना, झटके आना या बेहोश हो जाना साधारणतया दिमागी टीबी की ओर इशारा करते हैं। टीबी से ग्रसित बच्चों में कुपोषण और एनीमिया पाया जाता है। पौष्टिक और संतुलित आहार इलाज में सहायक होता है। बीसीजी का टीका लगवाने से गंभीर किस्म की टीबी से बचा जा सकता है।

कैसे रखें टीबी मरीज का ध्यान
टीबी में रोगी को प्रोटीन, ऊर्जा, खनिज लवण, विटामिन आदि की आवश्यकता अधिक होती है, जिसे पूरा करना जरूरी है। टीबी की अवस्था में रोगी का वजन दिन-प्रतिदिन कम होता जाता है, प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है, कोशिकाओं की टूट-फूट अत्यधिक होती है। ऐसे में इसके मरीज को आहार देते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिये।
ऊर्जा : क्षय रोग की अवस्था में रोगी को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। बुखार की अवस्था में शरीर का मेटाबॉलिक दर बढ़ जाता है। इसलिये ऊर्जा की मांग 600-1200 किलो कैलोरी तक धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिये।
प्रोटीन :  अत्यधिक कमजोरी होने से शरीर में कोशिकाओं की हानि अधिक मात्र में होती है जिसकी मरम्मत करने के लिए क्षय रोगी के आहार में प्रोटीन की मात्र 100-120 ग्राम तक धीरे-धीरे बढ़ा देनी चाहिये।
खनिज लवण : उपचार के लिए जो आइसोनाइज्ड दवाई दी जाती है वो रागी के शरीर में विटामिन डी के चयापचय में हस्तक्षेप करता है, जिसकी वजह से कैल्शियम तथा फॉस्फोरस के अवशोषण में कमी आती है। कैल्शियम क्षय रोग से हुये घाव को भरने का काम करता है, इसके साथ ही कैल्शियम, आयरन तथा फॉस्फोरस शरीर में कोशिकाओं, रक्त तथा तरल पदार्थ को दुबारा बनाने में मदद करता है। इसीलिये आहार में उच्च कैल्शियमयुक्त, आयरनयुक्त आहार रोगी को दिया जाना चाहिये।
विटामिन : रोगी के शरीर में विटामिन ए का चयापचय बहुत प्रभावित होता है, क्योंकि कैरोटिन र्प्याप्त मात्र में विटामिन ए में बदल नहीं पाता है। इसके लिये रोगी को विटामिन ए युक्त आहार देना आवश्यक है। इसके साथ ही विटामिन सी और बी वर्ग की भी जरूरत होती है।
तरल पदार्थ : मरीज को तरल पदार्थ पूरे दिन में (2500-5000 मिली) भरपूर मात्र में देना चाहिये।

कम भूख लगने पर क्या करे
रोगी को भूख बहुत कम या न के बराबर लगती है, इसलिए रोगी को बीमारी की तीव्रता के आधार पर भोजन की शुरुआत कम मात्र से करें साथ ही रोगी की पसंद व नापसंद का ध्यान रखें। तीव्र अवस्था के दौरान रोगी को उच्च तरल पदार्थ और मुलायम आहार ही दें। थोड़ी-थोड़ी मात्र में रोगी को तरल पदार्थ तीन घंटे मे 2-3 बार दें। बुखार की तीव्रता कम होने पर आहार के अंतराल को बढ़ायें। एक दिन में एक लीटर दूध और 3-4 अंडे प्रति दिन दें। जब स्थिति में सुधार होने लगे तब रोगी को सामान्य,भोजन दें।

टीबी की दवा बना सकती है पागल 
टीबी को जड़ से मिटाने के लिये मरीज को लम्बे समय तक दवा खानी पड़ती है। लम्बे समय तक चलने वाली यह दवा मरीज को पागल कर सकती है। ऐसे कई मामले आये हैं जिसमें  लम्बे समय तक टीबी की दवा खाने से मरीज को साइकोसिस(पागलपन) की बीमारी हो गयी। वह मानसिक रूप से कमजोर हो गये। साथ ही दवाई लम्बे समया तक चलने से आर्थराइटिस, त्वचा रोग, नेत्र सम्बंधी समस्यायें, बहरापन, जैसी बीमारी भी हो सकती है। एमडीआर टीबी यानि मल्टी डग रेजीडेंट टीबी की ऐसी अवस्था में जब दवाइयां रोग पर असर नहीं करतीं तब रोगी को विशेष दवाइयां दी जाती हैं। यह दवाइयां दो-दो वर्र्ष तक चलती हैं। कई बार दवाओं के रिएक्शन से अन्य बीमारियां होने लगती हैं और मरीज दवा खाना बंद कर देता है। यही कारण है कि मरीज का रोग ठीक नहीं हो पाता। मेडिकल साइंस में हुए सर्वे में यह बात साबित हुई है कि टीबी की दवा के रिएक्शन से मरीजों  में अन्य बीमारियां हो जाती है।

महिलाओं में साइलेंट रोग है पेल्विक टीबी
टीबी यानी तपेदिक के लक्षण सिर्फ सांस की परेशानी और खांसी नहीं है और यह सिर्फ आपके फेफड़े को ही प्रभावित नहीं करता है। बल्कि काम का तनाव, सिगरेट का धुआं और आपका गलत खानपान भी आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करते हैं और कई बीमारियां देते हैं। जैसे पेल्विक टीबी यानी श्रोणीय टीबी। टीबी बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है और यह शरीर के दूसरे अंगों को उतना ही प्रभावित करता है जितना फेफड़े को। पलमोनरी टीबी या फेफड़ों का तपेदिक 85 से 90 प्रतिशत तक जितना फेफड़े को प्रभावित करता है बाकी 10-15 फीसद संक्रमण शरीर के दूसरे हिस्सों जैसे हड्डी, पेट (आमाशय) और तिल्ली (स्पलीन) में होता है। महिलाओं में प्रजनन की उम्र में पेल्विक या जेनाइटल टीबी होने का खतरा ज्यादा होता है, जिसके कारण महिलाओं में बांझपन की आशंका बढ़ जाती है। एक सर्वे के मुताबिक इस वजह से दस फीसदी महिलाओं में बांझपन की समस्या पायी गयी है।

क्या है लक्षण- पेल्विक टीबी साइलेंट बीमारी की तरह है। महिलाओं में होने वाली यह बीमारी उनके शरीर में चुपचाप घुस जाती है। दस से 20 साल तक इसका कुछ पता नहीं चलता। बांझपन के कारण जब महिलाओं की जांच की जाती है, तब इस बीमारी की आशंका होती है। कुछ लक्षण जो इस बीमारी के कारण हो सकते हैं वह हैं पेट दर्द, असहनीय पीठ दर्द और अनियमित महावारी, कभी-कभी पेल्विक में दर्द दूसरे तरह के तपेदिक का संकेत होता है, जैसे आंत या पेट का।

कैसे होती हैं आप संक्रमित- संक्रमण के कई कारण हैं, खासकर जब आप पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त रहे हों। जननांगों  के रास्ते वायरस आपके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जब रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, तो ये हमारे शरीर पर हावी हो जाते हैं। इससे दूसरे संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है खासकर एचआईवी। टीबी होने के और भी कारण हैं जैसे स्मोकिंग। स्मोकिंग से कारसिनोजेन और दूसरे हानिकारक रसायन निकलते हैं, जिससे शरीर में संक्रमण का खतरा बढ़ता है और रोग से लड़ने की क्षमता धीरे-धीरे घटती जाती है। कई महिलायें लम्बे समय तक डाइटिंग भी करती रहती हैं। शरीर की सही क्षमता बनाये रखने के लिए और व्हाइट ब्लड कोशिका के कार्य के लिए विटामिन जरूरी है। इसलिए ज्यादा दिन तक डाइटिंग भी टीबी का मुख्य कारण है। इसके अलावा ज्यादा तनाव से हमारे शरीर में कारटिकोस्टेरॉयड बनता है, जिससे शरीर की क्षमता कम होती जाती है। भारत जैसे देश में एनीमिक महिलायें इस बीमारी की ज्यादा शिकार होती हैं।

2050 तक खत्म करो टीबी
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 बड़े मुल्कों से कहा है कि वे टीबी के खतरे को पहचानें और इसे 2050 तक खत्म करने में मदद करें। इन देशों को सलाह दी गयी है कि वे इसके फैलने के इलाकों की पहचान करें। हालांकि टीबी का इलाज हो सकता है लेकिन फिर भी विकसित देशों में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि इसकी वजह से हर साल 10,000 लोग मारे जाते हैं। डब्ल्यूएचओ में टीबी निरोधी कार्यक्रम से जुड़े मार्को राविगलियोनी का कहना है कि सरकारें अगर सख्त कदम उठायें, तो 2035 तक इनकी संख्या मौजूदा 10 लाख में 100 से घटा कर 10 लाख में 10 की जा सकता है, हम चाहते हैं कि 2050 तक टीबी का खात्मा हो जाये, जिसका मतलब 10 लाख में एक से कम मामले सामने आये।

भारत का मिशन 2020
भारत ने टीबी जैसी जानलेवा बीमारी को खत्म करने के लिए मिशन 2020 चलायी है। इसका एलान देश के स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्ष वर्धन ने की है। स्पेन के बार्सिलोना में विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल टीबी कॉन्फ्रेंस में हर्ष वर्धन ने टीबी के खिलाफ भारत के नये अभियान को पेश किया। हर्ष वर्धन ने कहा कि हम साल 2020 तक टीबी की बीमारी के खात्मे के रास्ते पर भारत को ले जाने के लिए वचनबद्ध हैं। टीबी निरोधक मिशन के अधिकारियों को टीबी-मिशन 2020 के तहत अगले पांच साल में अहम कामयाबी हासिल करने का निर्देश दिया है। इसके मरीजों को मुफ्त में इलाज करायी जायेगी, चाहे वो देश के किसी भी अस्पताल में भर्ती क्यों न हो। इसके लिए भारत सरकार 710  करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है।





टीबी खतरनाक है लाइलाज नहीं टीबी खतरनाक है लाइलाज नहीं Reviewed by saurabh swikrit on 7:33 am Rating: 5

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